________________ एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर वाला उम्बरदत्त नाम का एक बालक था। - . उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वनषंड नामक उद्यान में पधारे। नागरिक लोग तथा राजा उन के दर्शनार्थ नगर से निकले और धर्मोपदेश सुन कर सब वापिस चले गए। टीका-प्रस्तुत सूत्र में सप्तम अध्ययन के प्रधान नायकों के नामों का निर्देशन किया गया है। उन में नगर, उद्यान और यक्षायतन, उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पधारना, उनके दर्शनार्थ नगर की जनता और नरेश के आगमन तथा धर्म श्रवण आदि के विषय में पूर्व वर्णित अध्ययनों की भान्ति ही भावना कर लेनी चाहिए। नामगत भिन्नता को सूत्रकार ने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया है। -अड्ढे-यहां के बिन्दु से विवक्षित पाठ तथा –अहीण- यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ द्वितीय अध्याय में लिख दिए गए हैं / तथा समोसरणं परिसा जाव गओ-यहां के जाव यावत् पद से -निग्गया, राया निग्गओ, धम्मो कहिओ, परिसा राया य पडिइन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का अर्थ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के उपदेशामृत का पान करने के अनन्तर राजा तथा जनता के अपने-अपने स्थानों को वापिस लौट जाने के पश्चात् क्या हुआ, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं ___ मूल-तेणं कालेणं 2 भगवं गोतमे तहेव जेणेव पाडलिसंडे णगरे तेणेव उवागच्छति 2 त्ता पाडलिसंडं णगरं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, तत्थ णंपासति एगंपुरिसं कच्छुल्लं कोढियंदाओयरियं भगंदरियं अरिसिल्लं कासिल्लं सासिल्लं सोसिल्लं सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं सडियहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सड़ियकण्णनासियं रसियाए य पूएण य थिविथिवंतं वणमुहकिमिउत्तुयं तपगलंतपूयरुहिरं लालापगलंतकण्णनासं अभिक्खणं 2 पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणं कट्ठाइं कलुणाई वीसराइं कूयमाणं मच्छियाचडगरपहगरेणं अण्णिजमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीसं दंडिखंडवसणं खंडमल्लयखंडघडगहत्थगयं गेहे 2 देहंबलियाए वित्तिं कप्पेमाणं पासति 2 त्ता तदा भगवं गोयमे उच्चणीयमज्झिमकुलाई अडति, अहापज्जत्तं गेहति 2 पाडलि पडिनि जेणेव समणे भगवं भत्तपाणं आलोएति, भत्तपाणं पडिदंसेति प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [555