________________ करेमाणे-करते हुए उसकी। गीवाए-ग्रीवा-गरदन में। खुर-क्षुर-उस्तरे को। निवेसेहि-प्रविष्ट कर देना। तण्णं-तो। अहं-मैं। तुम-तुम को। अद्धरजियं करिस्सामि-अर्द्धराज्य से युक्त कर दूंगा अर्थात् तुम्हें आधा राज्य दे डालूंगा। तुम-तुम / अम्हेहिं-हमारे। सद्धिं-साथ। उराले -उदार-प्रधान। भोगभोगे-काम भोगों का। भुंजमाणे-उपभोग करते हुए। विहरिस्ससि-विहरण करोगे। तते णं-तदनन्तर। से-वह। चित्ते-चित्र नामक।अलंकारिए-अलंकारिक-नाई। णंदिसेणस्स-नन्दिषेण / कुमारस्स-कुमार के। एयमटुंएतदर्थक-उक्त अर्थ वाले। वचनं-वचन को। पडिसुणेति-स्वीकार करता है। तते णं-तदनन्तर। तस्सउस। चित्तस्स-चित्र नामक। अलंकारियस्स-अलंकारिक को। इमे-यह। एयारूवे-इस प्रकार के। जाव-यावत् विचार। समुप्पज्जित्था-उत्पन्न हुए। जति णं-यदि। सिरिदामे-श्रीदाम राजा। ममं-मेरी। एयमटुं-इस बात को। आगमेति-जान ले। तओ णं-तो। ममं-मुझे। ण णजति-न जाने अर्थात् यह पता नहीं कि वह। केणइ-किस। असुभेणं-अशुभ। कुमारेणं-कुमौत-कुत्सित मार से। मारिस्सति-मारेगा। त्ति कट्ट-ऐसे विचार कर। भीए ४-भीत-भयभीत हुआ, त्रस्त अर्थात् यह बात मेरे प्राणों की घातक होगी, इस विचार से त्रस्त हुआ, उद्विग्न-प्राणघात के भय से उस का हृदय कांपने लगा, संजातभय अर्थात् मानसिक कम्पन के साथ-साथ उस का शरीर भी कांपने लगा, इस प्रकार भीत, त्रस्त, उद्विग्न और. संजातभय हुआ वह / जेणेव-जहां पर। सिरिदामे-श्रीदाम। राया-राजा था। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छइ 2 त्ता-आ जाता है, आकर। सिरिदाम-श्रीदाम। रायं-राजा को। रहस्सियं-एकान्त में। करयल०-हाथ जोड़। जाव-यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजली रख कर। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगा। एवं-इस प्रकार। खलु-निश्चय ही। सामी !-हे स्वामिन् ! / णंदिसेणे-नन्दिषेण / कुमारे-कुमार। रज्जे-राज्य में। जाव-यावत्। मुच्छिते ४-मूर्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न हुआ। तुब्भे-आप को। जीविताओ-जीवन से। ववरोवेत्ता-व्यपरोपित कर अर्थात् आप को मार कर। सयमेव-स्वयं ही। रजसिरिं-राज्यश्री-राजलक्ष्मी का। कारेमाणे-संवर्धन कराता हुआ। पालेमाणे-पालन करता हुआ। विहरित्तए-विहरण करने की। इच्छति-इच्छा रखता है। तते णं-तदनन्तर / से-वह। सिरिदामे-श्रीदाम। राया-राजा। चित्तस्स-चित्र / अलंकारियस्स-अलंकारिक के। अंतिए-पास से। एयमटुं-इस बात को। सोच्चा-सुन कर, एवं। निसम्म-अवधारण-निश्चित कर। आसुरुत्ते-क्रोध से लाल पीला होता हुआ। जाव-यावत्। साहट्ट-मस्तक में तिउड़ी चढा कर अर्थात् अत्यन्त क्रोधित होता हुआ। णंदिसेणंनन्दिषेण। कुमार-कुमार को। पुरिसेहि-पुरुषों के द्वारा। गेण्हावेति 2 त्ता-पकड़वा लेता है, पकड़वा कर। एएणं-इस। विहाणेणं-विधान-प्रकार से। वझं-वह मारा जाए ऐसी राजपुरुषों को। आणवेतिआज्ञा देता है। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! / णंदिसेणे-नन्दिषेण / पुत्ते-पुत्र / जाव-यावत् अर्थात् स्वकृत कर्मों के फल का अनुभव करता हुआ। विहरति-विहरण कर रहा है। मूलार्थ-तदनन्तर श्रीदाम नरेश के वध का अवसर प्राप्त न होने से कुमार नन्दिंषेण ने किसी अन्य समय चित्र नामक अलंकारिक-नाई को बुला कर इस प्रकार कहा-कि हे महानुभाव! तुम श्रीदाम नरेश के सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में स्वेच्छापूर्वक आ जा सकते हो और श्रीदाम नरेश का बार-बार अलंकारिक कर्म करते रहते हो, अतः हे महानुभाव ! यदि तुम नरेश के अलंकारिक कर्म में प्रवृत्त होने के 542 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध