________________ अभिमत है, वह चतुर्थ अध्ययन में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां शकट कुमार का वर्णन है, जब कि प्रस्तुत में नन्दिषेण का। विशेष अन्तर वाली कोई बात नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन में नन्दिषेण के निर्देश से मानव जीवन का जो चित्र प्रदर्शन किया गया है, उस पर से उस की विकट परिस्थितियों का खासा अनुभव हो जाता है। मानव जीवन जहां अधिक से अधिक अन्धकारपूर्ण होता है वहां उस की नितान्त उज्ज्वलता भी विस्पष्ट हो जाती है। इस जीवन-यात्रा में मानव प्राणी किस-किस तरह की उच्चावच परिस्थितियों को प्राप्त करता है, तथा सुयोग्य अवसर प्राप्त होने पर वह अपने साध्य तक पहुंचने में कैसे सफलतां प्राप्त करता है, इस विषय का भी प्रस्तुत अध्ययन में अनुगम दृष्टिगोचर होता है। राजकुमार नन्दिषेण के जीवन का अध्ययन करने से हेयोपादेय रूप से वस्तुतत्त्व का त्याग और ग्रहण करने वाले विचारशील पुरुषों के लिए उस में से दो शिक्षाएं प्राप्त होती हैं। जैसे कि (1) प्राप्त हुए अधिकार का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। (2) किसी भी प्रकार के प्रलोभन में आकर अपने कर्त्तव्य से कभी पराङ्मुख नहीं होना चाहिए। ___ आज का मानव यदि सच्चे अर्थों में उत्तम तथा उत्तमोत्तम मानव बनना चाहता है तो उसे इन दोनों बातों को विशेषरूप से अपनाने का यत्न करना चाहिए। दुर्योधन चारकपाल-कारागृह के रक्षक-जेलर की भान्ति प्राप्त हुए अधिकार का दुरुपयोग करने वाला अधम व्यक्ति क्रूर एवं निर्दय वृत्ति से मानवता के स्थान में दानवता का अनुसरण करता है। जिस का परिणाम आत्म-पतन के अतिरिक्त और कुछ नहीं। इसी प्रकार नन्दिषेण की भान्ति राज्य जैसे तुच्छ सांसारिक प्रलोभन (जिस का कि पिता के बाद उसे ही अधिकार था) में आकर पितृघात जैसे अनर्थ करने का कभी स्वप्न में भी ध्यान नहीं करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि आत्मा को पतन की ओर ले जाने वाले अधमाधम दुष्कृत्यों से सदा पृथक् रहने का यत्न करना तथा उत्तम एवं उत्तमोत्तम पद को उपलब्ध करना ही मानव जीवन का प्रधान लक्ष्य होना चाहिए। ॥षष्ठ अध्याय समाप्त। 550 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रृंतस्कंध