________________ स्वामी को पूर्ववत् चिन्ता-विचार उत्पन्न हुआ, यावत् गौतम स्वामी उस पुरुष के पूर्वजन्मसम्बधी वृत्तान्त को भगवान से पूछते हैं, तदनन्तर भगवान उस के उत्तर में इस प्रकार प्रतिपादन करते हैं। टीका-प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पधारने से लेकर गौतम स्वामी के नगरी में जाने और वहां के राजमार्ग में हस्ती आदि तथा स्त्री पुरुषों से घिरे हुए पुरुष को देखने आदि के विषय में सम्पूर्ण वर्णन प्रथम की भान्ति जान लेने के लिए सूत्रकार ने आरम्भ में कुछ पदों का उल्लेख कर के यत्र तत्र जाव-यावत् शब्दों का उल्लेख कर दिया मथुरा नगरी के राजमार्ग में गौतम स्वामी ने जिस पुरुष को देखा, उस के विषय में प्रथम के अध्ययनों में वर्णित किए गए पुरुषों की अपेक्षा जो विशेष देखा वह निम्नोक्त है- . ____ उसे श्रीदाम नरेश के अनुचर एक चत्वर में ले जाकर अग्नि के समान लालवर्ण के तपे. हुए एक लोहे के सिंहासन पर बैठा देते हैं और अग्नि के समान तपे हुए लोहे के कलशों में पिघला हुआ तांबा, सीसा-सिक्का और चूर्णादि मिश्रित संतप्त जल एवं संतप्त क्षारयुक्त तैल आदि को भर कर उन से उस पुरुष का अभिषेक करते हैं अर्थात् उस पर गिराते हैं, तथा अग्नि के समान तपे हुए हार, अर्द्धहार तथा मस्तकपट्ट एवं मुकुट पहनाते हैं। . उस की इस दशा को देख कर गौतम स्वामी का हृदय पसीज उठा तथा उस की दशा का ऊहापोह करते हुए भगवान् गौतम वहां से चल कर भगवान् के पास आए और आकर उन्होंने दृष्ट व्यक्ति का सब वृत्तान्त भगवान को कह सुनाया तथा साथ में उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा, आदि सम्पूर्ण वृत्तान्त पूर्व की भान्ति ही जान लेना चाहिए। तदनन्तर भगवान् ने गौतम स्वामी द्वारा किए गए उक्त पुरुष के पूर्व भवसम्बन्धी प्रश्न का उत्तर देना प्रारम्भ किया। ताम्र ताम्बे को कहते हैं / त्रपु शब्द रांगा, कलई, टीन, जस्ता (जिस्त) के लिए प्रयुक्त होता है। सीसक नीलापन लिए काले रंग की एक मूल धातु का नाम है, जिस को सिक्का कहा जाता है। कलकल शब्द का अर्थ टीकाकार अभयदेव सूरि के शब्दो में "-कलकलायते इति कलकलं चूर्णकादिमिश्रितजलं-" इस प्रकार है अर्थात् चूर्णक आदि से मिश्रित गरमगरम जल का परिचायक कलकल शब्द है। तथा कहीं कलकल शब्द का-कलकल शब्द करता हुआ गरम-गरम पानी, यह अर्थ भी उपलब्ध होता है। क्षार-तैल-उस तैल का नाम है जिस में क्षार वाला चूर्ण मिला हुआ हो। निग्गओ जाव गया-यहां का जाव-यावत् पद "-धम्मो कहिओ परिसा पङि-" 516 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध