________________ अनेकविध लोहमय कुंडियां थीं, जिन में से कई एक ताम्र से पूर्ण थीं, कई एक त्रपु से परिपूर्ण थीं, कई एक सीसक-सिक्के से पूर्ण थीं। कितनी एक चूर्ण मिश्रित जल से भरी हुई और कितनी एक क्षारयुक्त तैल से भरी हुई थीं जोकि अग्नि पर रक्खी रहती थीं। तथा दुर्योधन नामक उस चारकपाल-जेलर के पास अनेक उष्ट्रों के पृष्ठभाग के समान बड़े-बड़े बर्तन (मटके ) थे, उन में से कितने एक अश्वमूत्र से भरे हुए थे, तथा कितने एक हस्तिमूत्र से भरे हुए थे, कितने एक उष्ट्रमूत्र से, कितने एक गोमूत्र से, कितने एक महिष मूत्र से, कितने एक अजमूत्र और कितने एक भेड़ों के मूत्र से भरे हुए थे। तथा दुर्योधन नामक उस चारकपाल के अनेक हस्तान्दुक (हाथ में बांधने का काष्ठ-निर्मित बन्धनविशेष), पादान्दुक (पांव में बांधने का काष्टनिर्मित बन्धनविशेष) हडि-काठ की बेड़ी, निगड़-लोहे की बेड़ी और श्रृंखला-लोहे की जंजीर के पुंज (शिखरयुक्त राशि) तथा निकर (शिखररहित ढेर) लगाए हुए रक्खे थे। तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक वेणुलताओं-बांस के चाबुकों, बैंत के चाबुकों, चिंचा-इमली के चाबुकों, कोमल चर्म के चाबुकों तथा सामान्य चाबुकों (कोड़ों) और वल्कलरश्मियों-वृक्षों की त्वचा से निर्मित चाबुकों के पुंज और निकर रक्खे पड़े थे। __तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक शिलाओं, लकड़ियों, मुद्गरों और कनंगरों के पुंज और निकर रक्खे हुए थे। तथा उस दुर्योधन के पास अनेकविध चमड़े की रस्सियों, सामान्य रस्सियों, वल्कलरज्जुओं-वृक्षों की त्वचा-छाल से निर्मित रज्जुओं, केशरज्जुओं और सूत्र की रज्जुओं के पुंज और निकर रक्खे हुए थे। तथा उस दुर्योधन के पास असिपत्र (कृपाण), करपत्र ( आरा),क्षुरपत्र (उस्तरा) और कदम्बचीरपत्र (शस्त्रविशेष) के पुंज और निकर रक्खे हुए थे। तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेकविध लोहकील, वंशशलाका, चर्मपट्ट, और अलपट्ट के पुंज और निकर लगे पड़े थे। तथा उस दुर्योधन कोतवाल के पास अनेक सूइयों, दंभनों, और लघु मुद्गरों के 1. चूर्णमिश्रित जल का अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि ऐसा पानी जिस का स्पर्श होते ही शरीर में . जलन उत्पन्न हो जाए और उसके अन्दर दाह पैदा कर दे। 522 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध