________________ वेढावेति २-बंधवाता है, बंधवाकर। आयवंसि-आतप-धूप में। दलयति २-डलवा देता है, डलवाकर। सुक्खे समाणे-सूखने पर। चडचडस्स-चड़चड़ शब्द पूर्वक, उनका। उप्पाडेति-उत्पाटन कराता है। तते णं-तदनन्तर / से-वह / दुजोहणे-दुर्योधन। चारगपालए-चारकपाल-कारागाररक्षक। एयकम्मे ४एतत्कर्मा-यही जिस का कर्म बना हुआ था, एतत्प्रधान-यही कर्म जिसका प्रधान बना हुआ था, एतद्विद्ययही जिस की विद्या-विज्ञान था, एतत्समाचार-यही जिस के विश्वासानुसार सर्वोत्तम आचरण था, ऐसा बना हुआ। सुबहुं-अत्यधिक। पावं कम्म-पाप कर्म का। समजिणित्ता-उपार्जन कर के। एगतीसं वाससयाई३१ सौ वर्ष की। परमाउं-परम आयु को। पालइत्ता-पाल कर-भोग कर। कालमासे-कालमास में अर्थात् मृत्यु का समय आ जाने पर। कालं किच्चा-काल करके। छट्ठीए पुढवीए-छठी नरक में। उक्कोसेणं-उत्कृष्टरूप से। बावीससागरोवमट्ठितिएसु-बाईस सागरोपम की स्थिति वाले। नेरइएसुनारकियों में। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। मूलार्थ-तदनन्तर वह दुर्योधन नामक चारकपाल-कारागार का प्रधान नायक अर्थात् जेलर सिंहरथ राजा के अनेक चोर, पारदारिक, ग्रन्थिभेदक, राजापकारी, ऋणधारक, बालघाती, विश्वासघाती, जुआरी और धूर्त पुरुषों को राजपुरुषों के द्वारा पकड़वा कर ऊर्ध्वमुख गिराता है, गिरा कर लोहदंड से मुख का उद्घाटन करता है अर्थात् खोलता है, मुख खोल कर कितने एक को तप्त-ढला हुआ ताम्र-तांबा पिलाता है, कितने एक को त्रपु, सीसक, चूर्णादि मिश्रित जल अथवा कलकल करता हुआ उष्णात्युष्ण जल और क्षारयुक्त तैल पिलाता है, तथा कितनों को उन्हीं से अभिषेक कराता है। कितनों को ऊर्ध्वमुख अर्थात् सीधा गिरा कर उन्हें अश्वमूत्र, हस्तिमूत्र, यावत् एडों-भेड़ों का मूत्र पिलाता है। कितनों को अधोमुख गिरा कर घलघल शब्द पूर्वक वमन कराता है, तथा कितनों को उसी के द्वारा पीड़ा देता है। कितनों को हस्तान्दुकों, पादान्दुकों, हडियों, तथा निगड़ों के बन्धनों से युक्त करता है। कितनों के शरीर को सिकोड़ता और मरोड़ता है। कितनों को श्रृंखलाओं-सांकलों से बान्धता है।तथा कितनों का हस्तच्छेदन यावत् शस्त्रों से उत्पाटन कराता है। कितनों को वेणुलताओं यावत् वल्करश्मियों-वृक्षत्वचा के चाबुकों से पिटवाता है। कितनों को ऊर्ध्वमुख गिरा कर उनके वक्षःस्थल पर शिला और लक्कड़ धरा कर राजपुरुषों के द्वारा उस शिला तथा लक्कड़ का उत्कंपन कराता है। कितनों के तंत्रियों यावत् सूत्ररज्जुओं के द्वारा हाथों और पैरों को बंधवाता है बन्धवा कर कूप में उलटा लटकाता है, लटका कर गोते खिलाता है तथा कितनों का असिपत्रों यावत् कलम्बचीरपत्रों से छेदन कराता है और उस पर क्षारयुक्त तैल की मालिश कराता है। 530 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध