________________ (9) सूची, दम्भन और कौटिल्य इन सबके पुंज और निकर रखे रहते थे। (10) शस्त्रविशेष, पिप्पल, कुठार, नखच्छेदक और दर्भ इन सब के पुंज और निकर रखे रहते थे। उपरोक्त ताम्र आदि शब्दों का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह निम्नोक्त है- . ताम्र, त्रपु, सीसक, कलकल, क्षारतैल इन शब्दों का अर्थ पीछे लिखा जा चुका है। उष्ट्रिका का अर्थ है-"-उष्ट्रस्याकारः पृष्ठावयवः इवाकारो यस्याः सा-" अर्थात् ऊंट के आकार का लम्बी गर्दन वाला बर्तन। हिन्दी में जिसे मटका-माट कहा जाता है। हस्तान्दुकहाथ बांधने के लिए काठ आदि के बन्धनविशेष-हथकड़ी को कहते हैं। पादान्दुक का अर्थ है-पाद बांधने का काष्ठमय उपकरण-पांव की बेड़ी। हडि-शब्द काष्ठमय बंधन विशेष के लिए अर्थात् काठ की बेड़ी इस अर्थ में प्रयुक्त होता है। निगड-पांव में डालने की लोहमय बेड़ी का नाम है। श्रृंखला-सांकल को अथवा लोहे का बना हुआ पादबन्धन-बेड़ी को कहते ' हैं। शिखर-चोटी वाली राशि-ढेर को पुंज, और बिना शिखर वाली राशि को निकर कहते हैं। तात्पर्य यह है कि बहुत ऊंचे तथा विस्तृत ढेर का पुंज शब्द से ग्रहण होता है और सामान्य ढेर को निकर शब्द से बोधित किया जाता है। स्थल में उत्पन्न होने वाले बांस की छड़ी या चाबुक का नाम वेणुलता, तथा जल में उत्पन्न बांस की छड़ी या चाबुक को वेत्रलता कहते हैं। चिंचा-इमली का नाम है उसकी लकड़ी की लता-छड़ी या चाबुक को चिंचालता कहते हैं। छिवा यह देश्य-देशविशेष में बोला जाने वाला पद है, इस का अर्थ श्लक्षण कोमल चर्म का चाबुक-कोड़ा होता है। सामान्य चर्म युक्त यष्टिका-चाबुक का नाम कशा है। वल्करश्मि इस पद में दो शब्द हैं, एक वल्क दूसरा रश्मि। वल्क पेड़ की छाल को कहते हैं और रश्मि चाबुक का नाम है, तात्पर्य यह है कि वृक्षों की त्वचा से निर्मित्त चाबुक का नाम वल्करश्मि होता है। चौड़े पत्थर का नाम शिला है। लकुट लाठी, छड़ी, लक्कड़ और डण्डे का नाम है। मुद्गर एक शस्त्रविशेष को कहते हैं। कनर पद की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दो में-"-के पानीये ये नङ्गरा बोधिस्थनिश्चलीकरणपाषाणास्ते कनङ्गराः, कानङ्गराः वा ईषनङ्गरा इत्यर्थः-" इस प्रकार है। अर्थात् क नाम जल का है और नङ्गर उस पत्थर को कहते हैं जो समुद्र में जहाज़ को निश्चल-स्थिर करता है। तात्पर्य यह है कि समुद्र में जहाज़ को स्थिर करने वाला एक प्रकार का पत्थर कनङ्गर कहलाता है, आजकल लंगर कहा जाता है। टीकाकार के मत में कानङ्गर शब्द भी प्रयुक्त होता है, और उस का अर्थ जहाज को स्थिर करने वाले छोटेछोटे पत्थर-ऐसा होता है। 524 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध