________________ पुंजा निकराश्च तिष्ठन्ति / तस्य दुर्योधनस्य चारकपालस्य बहवः सूचीनां च दम्भनानां च कौटिल्यानां च पुंजा निकराश्च तिष्ठन्ति / तस्य दुर्योधनस्य चारकपालस्य बहवः शस्त्राणां च पिप्पलानां च कुठाराणां च नखच्छेदनानां च दर्भाणां च पुंजा निकराश्च तिष्ठन्ति। पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! तेणं कालेणं तेणं समएणंउस काल तथा उस समय में। इहेव-इसी। जम्बुद्दीवे-जम्बूद्वीप नामक। दीवे-द्वीप के अन्तर्गत / भारहे वासे-भारतवर्ष में। सीहपुरे-सिंहपुर / णाम-नाम का। णगरे-नगर। होत्था-था, जो कि। रिद्ध-ऋद्धभवनादि की बहुलता से युक्त, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों से रहित तथा समृद्ध-धन धान्यादि से परिपूर्ण, था। तत्थ णं-उस। सीहपुरे-सिंहपुर। णगरे-नगर में। सीहरहे-सिंहरथ। णाम-नाम का। राया-राजा। होत्था-था। तस्स णं-उस। सीहरहस्स-सिंहरथ। रण्णो-राजा का। दुजोहणे-दुर्योधन। णाम-नाम का। चारगपाले-चारकपाल अर्थात् कारागाररक्षक-जेलर। होत्था-था, जो कि / अहम्मिएअधर्मी। जाव-यावत्। दुप्पडियाणंदे-दुष्प्रत्यानन्द-बड़ी कठिनाई से सन्तुष्ट होने वाला था। तस्स णंउस। दुजोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्स-चारकपाल का। इमे-यह। एयारूवं-इस प्रकार का। चारगभण्डे-चारकभाण्ड-कारागारसम्बन्धी उपकरण / होत्था-था। बहवे-अनेक। अयकुण्डीओ-लोहमय कुण्डियां थीं, जिन में से। अप्पेगतियाओ-कितनी एक। तंबभरियाओ-ताम्र से भरी हुई अर्थात् पूर्ण थीं। अप्पेगतियाओ-कितनी एक। तउयभरियाओ-त्रपु-रांगा से पूर्ण थीं। अप्पेगतियाओ-कई एक। सीसगभरियाओ-सीसक-सिक्के से पूर्ण थीं। अप्पेगतियाओ-कई एक / कलकलभरियाओ-चूर्णकादि मिश्रित जल से अथवा कलकल करते हुए अर्थात् उबलते हुए अत्युष्ण जल से भरी हुई थीं.। अप्पेगतियाओकितने एक। खारतेल्लभरियाओ-क्षारयुक्त तैल से परिपूर्ण थीं, जो कि। अगणिकायंसि-अग्निकायआग पर। अद्दहियाओ-स्थापित की हुई। चिट्ठन्ति-रहती थीं। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्स-चारकपाल के। बहवे-बहुत से। उट्टियाओ-ऊंट के पृष्ठ भाग के समान बड़े-बड़े बर्तनमटके थे, जिन में से। अप्पेगतियाओ-कई एक तो। आसमुत्तभरियाओ-घोड़ों के मूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक।हत्थिमुत्तभरियाओ-हाथियों के मूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक। उट्टमुत्तभरियाओ-उष्ट्रों के मूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक। गोमुत्तभरियाओ-गोमूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ-कई एक।अयमुत्तभरियाओ-अजों-बकरों के मूत्र से भरे हुए थे। अप्पेगतियाओ और कितनेक। एलमुत्तभरियाओ-भेड़ों के मूत्र से भरे हुए थे, ये सब मटके। बहुपडिपुण्णाओ-सर्वथा परिपूर्ण, अर्थात् मुंह तक भरे। चिट्ठन्ति-रहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्सचारकपाल के। बहवे-अनेक। हत्थंदुयाण य-हस्तान्दुक-हाथ बांधने के लिए काष्ठ-निर्मित्त बन्धनविशेष। पायंदुयाण य-पादान्दुक-पादबन्धन के लिए काष्ठमय बंधनविशेष। हडीण य-हडि-काष्ठमय बन्धन-विशेष-काठ की बेड़ी। नियलाण य-निगड़-पांव में डालने की लोहमय बेड़ी। संकलाण यश्रृंखला-सांकल अथवा पांव के बांधने के लोहमय बन्धन, उन के। पुंजा-पुंज-शिखरयुक्त राशि। निगरा य-शिखररहित राशि-ढेर। सण्णिक्खित्ता-एकत्रित किए हुए। चिट्ठन्ति-रहते थे। तस्स णं-उस। 520] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय / [प्रथम श्रुतस्कंध