________________ सुदर्शना रखेंगे। जब दोनों बालभाव को त्याग कर युवावस्था में आएंगे तो उनका शरीरगत सौंदर्य अथच रूप-लावण्य नितान्त आकर्षक होगा। उसमें भी सुदर्शना का यौवन-विकास इतना अधिक स्फुट और मोहक होगा कि उसके अद्वितीय रूप-सौन्दर्य से मोहित हुआ उसका सहोदर ही उसे अपनी सहधर्मिणी बना कर काम-वासना को उपशान्त करने का नीचतम उद्योग करेगा। तात्पर्य यह है कि सुदर्शना के रूप-लावण्य में अत्यधिक मूर्च्छित हुआ शकट कुमार परम पुनीत भगिनी-सम्बन्ध का भी उच्छेद कर डालेगा। संक्षेप में या दूसरे शब्दों में कहें तो बाल्य-काल के भाई-बहिन यौवन-काल में पति-पत्नी के रूप में आभासित होंगे। तदनन्तर इस प्रकार के सभ्यजन विगर्हित कार्यों को करता हुआ शकट कुमार स्वयं कूटग्राही अर्थात् धोखे से जीवों को फंसाने वाला, बन बैठेगा। कूटग्राही बन जाने के बाद शकट कुमार की पापपूर्ण प्रवृत्तियों में और भी प्रगति होगी, तथा अन्त में अधिक सावद्य व्यवहार से उपार्जित किए पापकर्मों के प्रभाव से वह रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में जन्म लेगा। ___पाठकों को स्मरण होगा कि सूत्रकार प्रस्तुत सूत्र के प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का वर्णन कर आए हैं, तब सूत्रकार ने प्रकृत सूत्र को संक्षिप्त करने के उद्देश्य से पूर्व वर्णित सूत्रपाठ का स्मरण कराने के लिए "संसारो तहेव जाव पुढवीए०" यह उल्लेख कर दिया है। इसका तात्पर्य यह है कि शकट कुमार का संसारभ्रमण अर्थात् नरक से निकल कर अन्यान्य गतियों में गमनागमन करना इत्यादि तथैव-उसी प्रकार जान लेना अर्थात् मृगापुत्र की भान्ति समझ लेना। शेष जो अन्तर है उसे सूत्रकार स्वयं ही "ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता" इत्यादि शब्दों मैं कह रहे हैं। अर्थात् शकट कुमार का जीव नरक से निकल कर वाराणसी नगरी में मत्स्य के रूप में अवतरित होगा, वहां मत्स्यविघातकों के द्वारा मारा जाने पर वह उसी नगरी के एक श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहां समुचित रीति से पालन पोषण और संवर्द्धन को प्राप्त होता हुआ वह युवावस्था में किसी स्थविर-वृद्ध जैनसाधु के सहवास में आकर सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और वैराग्यभावित अन्त:करण से अनगारवृत्ति को धारण कर अन्त में सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां की देवभव-सम्बन्धी स्थिति को पूरा कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा, और वहां पर यथाविधि संयम के आराधन से अपने समस्त कर्मों का अन्त करके परम दुर्लभ निर्वाण पद को उपलब्ध करेगा। ___ मानव प्राणी की यात्रा कितनी लम्बी और कितनी विकट तथा उसका पर्यवसान कहां और किस प्रकार से होता है यह सब शकट कुमार के कथासंदर्भ से भली-भान्ति विदित हो जाता है। ____ प्रस्तुत अध्ययन के आरम्भ में यह बताया गया था कि श्री जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा 476 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध