________________ निकल कर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। तदनन्तर उत्पन्न हुए बालक के माता पिता ने जन्म से बारहवें दिन नामकरण संस्कार करते हुए सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज होने के कारण उसका बृहस्पतिदत्त यह नाम रखा। तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त बालक पांच धाय माताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, एवं परिपक्व विज्ञान को उपलब्ध किए हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र था, कारण यह था कि ये दोनों एक साथ उत्पन्न हुए, एक साथ बढ़े और एक साथ ही खेले थे। तदनन्तर किसी अन्य समय महाराज शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गए। तब उदयन कुमार बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के साथ रोता हुआ, आक्रन्दन तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का बड़े आडम्बर के साथ निस्सरण तथा मृतकसम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है। तदनन्तर उन राजा ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि लोगों ने मिल कर बड़े समारोह के साथ उदयनं कुमार का राज्याभिषेक किया। तब से उदयन कुमार हिमालय आदि पर्वत के समान महाप्रतापी राजा बन गया। तदनन्तर बृहस्पतिदत्त बालक उदयन नरेश का पुरोहित बना और पौरोहित्य कर्म करता हुआ वह सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में इच्छानुसार बेरोकटोक गमनागमन करने लगा। तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त पुरोहित का उदयन नरेश के अन्तःपुर में समय, असमय, काल, अकाल तथा रात्रि और संध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए किसी समय . पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्ध भी हो गया। तदनुसार पद्मावती देवी के साथ वह उदार यथेष्ट मनुष्यसम्बन्धी काम-भोगों का सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। इधर किसी समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त हो कर और समस्त आभूषणों से अलंकृत हो कर जहां पद्मावती देवी थी वहां पर आया,आकर उसने पद्मावती देवी के साथ कामभोगों का भोग करते हुए बृहस्पतिदत्त पुरोहित को देखा, देख कर वह क्रोध से तमतमा उठा और मस्तक पर तीन बल वाली तिउड़ी चढ़ा कर बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों के द्वारा पकड़वा कर यह-इस प्रकार वध कर डालने योग्य है-ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा दे देता है। त " प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय . [501