________________ इस जन्म में उसे बोधिलाभ-सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी और वह मृगापुत्रादि की भान्ति ही विकास मार्ग की ओर प्रस्थान करता हुआ अन्त में निर्वाण पद को प्राप्त करके जन्म मरण से रहित होता हुआ शाश्वत सुख को प्राप्त कर लेगा। "-रयणप्पभाए० संसारो तहेव जाव पुढवीए०-" यहां के बिन्दु से प्रथम अध्याय में पढ़े गए "-पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु जाव उववजिहिति-" इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। तथा-संसार शब्द "-संसारभ्रमण-" इस अर्थ का परिचायक है और तहेव पद "-मृगापुत्र की भान्ति संसारभ्रमण करेगा-" इस अर्थ का बोध कराता है। मृगापुत्र के संसारभ्रमण का वर्णन भी प्रथम अध्याय में किया जा चुका है। उसी संसारभ्रमण के संसूचक पाठ को जाव-यावत् पद से सूचित किया गया है। अर्थात् यावत् पद प्रथम अध्याय में पढ़े गए-से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु-से लेकर -वाउ, तेउ आउ०-यहां तक के पदों का परिचायक है। तथा "-पुढवीए.-" यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ की सूचना तृतीय अध्याय में की जा चुकी है। तथा-पुत्तत्ताए०-यहां के बिन्दु से "-पच्चायाहिति से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिते केवलं-" इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। इन का अर्थ द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। "बोहिं, सोहम्मे महाविदेहे० सिज्झिहिति 5-" इन पदों से विवक्षित पाठ का वर्णन चौथे अध्ययन में किया जा चुका है। पाठक वहीं से देख सकते हैं। - प्रस्तुत कथा-सन्दर्भ में बृहस्पतिदत्त के पूर्व और परभवों के संक्षिप्त वर्णन से मानवप्राणी की जीवनयात्रा के रहस्यपूर्ण विश्रामस्थानों का काफी परिचय मिलता है। वह जीवन की नीची से नीची भूमिका में विहरण करता-करता, जिस समय विकासमार्ग की ओर प्रस्थान करता है और उस पर सतत प्रयाण करने से उस को जिस उच्चतम भूमिका की प्राप्ति होती है, उस का भी स्पष्टीकरण बृहस्पतिदत्त के जीवन में दृष्टिगोचर होता है। इस पर से मानवप्राणी को अपना कर्तव्य निश्चित करने का जो सुअवसर प्राप्त होता है, उसे कभी भी खो देने की भूल नहीं करनी चाहिए। प्रारम्भ में श्री जम्बू स्वामी ने पांचवें अध्ययन के अर्थ को सुनने के लिए श्री सुधर्मा स्वामी से जो प्रार्थना की थी, उस की स्वीकृतिरूप ही यह प्रस्तुत पांचवां अध्ययन प्रस्तावित हुआ है। इसी भाव को सूचित करने के लिए मूल में णिक्खेवो यह पद प्रयुक्त किया गया है। निक्षेप शब्द का अर्थ सम्बन्धी विचार द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। पाठक वहीं देख सकते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में निक्षेप पद से जो पाठ अपेक्षित है वह निम्नोक्त है__ "-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दुहविवागाणं पंचमस्स प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [507