________________ आक्रंदन करता हुआ। विलवमाणे-विलाप करता हुआ। सयाणीयस्स-शतानीक। रण्णो-राजा का। . महया-महान् / इड्ढिसक्कारसमुदएणं-ऋद्धि तथा सत्कार समुदाय के साथ। णीहरणं-निस्सरण-अर्थी निकालने की क्रिया। करेति २-करता है, निस्सरण करके।बहूइं-अनेक।लोइयाइं-लौकिक।मयकिच्चाईमतकसम्बन्धी क्रियाओं को। करेति-करता है। तते णं-तदनन्तर। बहवे-बहत से। राईसर-राजा। जाव-यावत् / सत्थवाहा-सार्थवाह, ये सब मिल कर / उदयणं- उदयन / कुमार-कुमार को। महया २बड़े समारोह के साथ। रायाभिसेगेणं-राजयोग्य अभिषेक से। अभिसिंचंति-अभिषिक्त करते हैं अर्थात् उस का राज्याभिषेक करते हैं। तते णं-तदनन्तर। से-वह / उदयणे-उदयन। कुमारे-कुमार। राया-राजा। जाते-बन गया। महया-हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् प्रतापशाली हो गया। तते णं-तदनन्तर। से-वह। बहस्सतिदत्ते-बृहस्पतिदत्त। दारए-बालक। उदयणस्स-उदयन। रणो-राजा का। परोहियकम्मेपुरोहितकर्म। करेमाणे-करता हुआ। सव्वट्ठाणेसु-सर्वस्थानों-अर्थात् भोजनस्थान आदि सब स्थानों में। सव्वभूमियासु-सर्वभूमिका-प्रासाद-महल की प्रथम भूमिका-मंजिल से लेकर सप्तम भूमि तक अर्थात् सभी भूमिकाओं में। अंतेउरे य-और अन्तःपुर में। दिण्णवियारे यावि-दत्तविचार-अप्रतिबद्ध गमनागमन .. करने वाला अर्थात् जिस को राजा की ओर से सब स्थानों में यातायात करने की आज्ञा उपलब्ध हो रही हो, ऐसा / जाते यावि होत्था हो गया था। तते णं-तदनन्तर / से-वह / बहस्सतिदत्ते-बृहस्पतिदत्त / पुरोहितेपुरोहित। उदयणस्स-उदयन। रण्णो-राजा के। अन्तेउरं-अन्तःपुर में -रणवास में। वेलासु य-वेलाउचित अवसर अर्थात् ठीक समय पर। अवेलासु-अवेला-अनवसर-बेमौके अर्थात् भोजन शयनादि के समय। काले य-काल अर्थात् प्रथम और तृतीय प्रहर आदि में। अकाले य-और अकाल में अर्थात् मध्याह्न आदि समय में। राओ य-रात्रि में। वियाले य-और सायंकाल में। पविसमाणे-प्रवेश करता : हुआ। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-किसी समय। पउमावतीए-पद्मावती। देवीए-देवी के। सद्धिं-साथ। संपलग्गे-संप्रलग्न-अनुचित सम्बन्ध करने वाला। यावि होत्था-भी हो गया। पउमावतीए-पद्मावती। देवीए-देवी के। सद्धिं-साथ / उरालाइं०-उदार-प्रधान मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का / भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ। विहरति-समय व्यतीत करने लगा। इमं च णं-और इधर / उदयणे-उदयन। राया-राजा। ण्हाए-स्नान कर / जाव-यावत्। विभूसिते-सम्पूर्ण आभूषणों से अलंकृत हुआ। जेणेव-जहां / पउमावतीपद्मावती। देवी-देवी थी। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छइ २-आता है, आकर। बहस्सतिदत्तं-बृहस्पतिदत्त / पुरोहितं-पुरोहित को। पउमावतीए-पद्मावती। देवीए-देवी के। सद्धिं-साथ। उरालाई-उदार-प्रधान काम-भोगों का। भुंजमाणं-सेवन करते हुए को। पासति २-देखता है, देख कर। आसुरुत्ते-क्रोध से लाल-पीला हो। तिवलियं-त्रिवलिक-तीन बल वाली। भिउडिं-भृकुटि-तिउड़ी। णिडाले-मस्तक पर। साहट्ट-चढ़ा कर।बहस्सतिदत्तं-बृहस्पतिदत्त / पुरोहितं-पुरोहित को। पुरिसेहि-पुरुषों के द्वारा / गेण्हावेति २-पकड़वा लेता है, पकड़वा कर। जाव-यावत्। एतेणं-इस। विहाणेणं-विधान से। वझं-यह मारने योग्य है, ऐसी। आणवेति-आज्ञा देता है। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! बहस्सतिदत्ते-बृहस्पतिदत्त / पुरोहिते-पुरोहित। पुरा-पूर्वकाल में किए हुए। पुराणाणं-पुरातन / जावयावत् कर्मों के फल का उपभोग करता हुआ। विहरति-समय व्यतीत कर रहा है। मूलार्थ-तदनन्तर महेश्वरदत्त पुरोहित का पापिष्ट जीव उस पांचवीं नरक से 500 ] श्री विपाक सूत्रम् /पंचम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध