________________ ततस्ते बहवो वैद्या वैद्यपुत्राश्च 6 यदा नो संशक्नुवन्ति तेषां षोड़शानां रोगातंकानामेकमपि रोगातंकमुपशमयितुं, तदा श्रान्तास्तान्ताः परितान्ताः यस्या एव दिशः प्रादुर्भूतास्तावदिशं प्रतिगताः। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। सोलसहिं-उक्त सोलह प्रकार के। रोगातंकेहि-भयानक रोगों से। अभिभूते समाणे-खेद को प्राप्त / से एक्काई-वह एकादि नामक / रट्ठकूडे-राष्ट्रकूट। कोटुंबियपुरिसेकौटुम्बिक पुरुषों... सेवकों को। सद्दावेति 2 त्ता-बुलाता है, बुलाकर। एवं वयासी-इस प्रकार कहता है। देवाणुप्पिया !-हे देवानुप्रियो ! अर्थात् हे महानुभावो! तुब्भे णं-तुम लोग। गच्छह-जाओ तथा। विजयवद्धमाणे खेडे-विजयवर्द्धमान खेट के। सिंघाडग-त्रिकोणमार्ग। तिय-त्रिक मार्ग-जहां तीन रास्ते मिलते हों। चउक्क-चतुष्क-जहां पर चार रास्ते इकट्ठे होते हों। चच्चर-चत्वर-जहां चार से भी अधिक रास्ते मिलते हों। महापह-महापथ-राजमार्ग-जहाां बहुत से मनुष्यों का गमना-गमन होता हो और / पहेसुसामान्य मार्गों में। महया 2 सद्देणं-बड़े ऊंचे स्वर से। उग्घोसेमाणा २-उद्घोषणा करते हुए। एवं-इस प्रकार। वयह-कहो। देवाणुप्पिया !-हे महानुभावो ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। एक्काइ०एकादि राष्ट्रकूट के। सरीरगंसि-शरीर में। सोलस-सोलह। रोगातंका-भयंकर रोग। पाउब्भूता-उत्पन्न हो गए हैं। तंजहा-जैसे कि। सासे-श्वास 1 / कासे-कास 2 / जरे-ज्वर 3 / जाव-यावत्। कोढे १६कुष्ठ। तं-इसलिए। देवाणुप्पिया !-हे महानुभावो! जे-जो। वेजो वा-वैद्य-शास्त्र तथा चिकित्सा में कुशल, अथवा। वेजपुत्तो वा-वैद्य-पुत्र अथवा। जाणओ वा-ज्ञायक-केवल शास्त्र में कुशल, अथवा। जाणयपुत्तो वा-ज्ञायक-पुत्र अथवा। तेइच्छिओ वा-चिकित्सक-केवल चिकित्सा-इलाज करने में निपुण, अथवा। तेइच्छियपुत्तो वा-चिकित्सक-पुत्र / एगातिस्स रट्ठकूडस्स-एकादि नामक राष्ट्रकूट के। तेसिं- उन / सोलसण्हं-सोलह / रोगातंकाणं-रोगातंकों में से। एगमवि रोगासंकं-एक रोगातंक को भी। उवसामित्तते-उपशान्त करना ।इच्छति-चाहता है। तस्सणं-उसको। एक्काई-एकादि / रटकूडे-राष्ट्रकूट। विपुलं-बहुत सा। अत्थसंपयाणं दलयति-धन प्रदान करेगा, इस प्रकार / दोच्चं पि-दो बार। तच्चं पितीन बार। उग्घोसेह 2 त्ता-उद्घोषणा करो, उद्घोषणा कर के। एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह-इस आज्ञप्तिआज्ञा का प्रत्पर्यण करो, वापिस आकर निवेदन करो, तात्पर्य यह है कि मेरी इस आज्ञा का यथाविध पालन किया गया है, इसकी सूचना दो। तते णं-तदनन्तर। ते-वे। कोडुंबियपुरिसा-कौटुम्बिक-सेवक पुरुष। जाव-यावत् एकादि की आज्ञानुसार उद्घोषणा कर के। पच्चप्पिणंति-वापिस आकर निवेदन करते हैं अर्थात हम ने घोषणा कर दी है ऐसी सचना दे देते हैं। तते णं-तदनन्तर / से-उस।विजयवद्धमाणेविजयवर्द्धमान। खेडे-खेट में। इमं एयारूवं-इस प्रकार की। उग्घोसणं-उद्घोषणा की। सोच्चासुनकर तथा। णिसम्म-अवधारण कर / बहवे-अनेक। वेज्जा य ६-वैद्य, वैद्य-पुत्र, ज्ञायक, ज्ञायक-पुत्र, चिकित्सक, चिकित्सक-पुत्र। सत्थकोसहत्थगया-शास्त्रकोष-औजार रखने की पेटी (बक्स) हाथ में लेकर। सएहिं सएहि-अपने-अपने। गेहेहिंतो-घरों से। पडिनिक्खमंति-निकल पड़ते हैं। 2 त्तानिकल कर। विजयवद्धमाणस्स-विजय वर्द्धमान नामक। खेडस्स-खेट के। मझंमज्झेणं-मध्य भाग से जाते हुए। जेणेव-जहां। एगाइरट्ठकूडस्स-एकादि राष्ट्रकूट का। गेहे-घर था। तेणेव-वहां पर / उवागच्छंति 174 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय . [ प्रथम श्रुतस्कंध