________________ . पदार्थ-तते णं-तदनन्तर / से दंडे-वह दण्डनायक-कोतवाल। जेणेव-जहां। अभग्गसेणेअभग्नसेन। चोरसेणावती-चोरसेनापति था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति 2 त्ता-आता है, आकर। अभग्गसेणेणं-अभग्नसेन / चोरसेणावइणा-चोरसेनापति के। सद्धिं-साथ। संपलग्गे यावि होत्था-युद्ध में प्रवृत्त हो गया। तते णं-तदनन्तर। से अभग्गसेणे-वह अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति। तं-उस। दंडं-दण्डनायक को। खिप्पामेव-शीघ्र ही। हयमहिय-हतमथित कर अर्थात् उस दण्डनायक की सेना का हनन किया-मारपीट की और उस दण्डनायक के मान का मन्थन-मर्दन कर। जाव-यावत्। पडिसेहेतिभगा देता है। तते णं- तदनन्तर / से-वह। दंडे-दण्डनायक। अभग्ग०-अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति के द्वारा। हय०-हत। जाव-यावत् / पडिसेहिते-प्रतिषिद्ध / समाणे-हुआ अर्थात् भगाया गया। अथामेतेजहीन / अबले-बलहीन / अवीरिए-वीर्यहीन / अपुरिसक्कारपरक्कमे-पुरुषार्थ तथा पराक्रम से हीन हुआ। अधारणिज्जमिति कट्ट-शत्रु सेना को पकड़ना कठिन है-ऐसा विचार कर / जेणेव-जहां। पुरिमताले णगरे-पुरिमताल नगर था और। जेणेव-जहां पर। महब्बले राया-महाबल राजा था। तेणेव-वहां पर। उवा०२-आता है, आकर। करयल-जाव-दोनों हाथ जोड़ यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके। एवं-इस प्रकार। वयासी-कहने लगा। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सामी !-हे स्वामिन् ! अभग्गसेणे-अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति। विसमदुग्गगहणं-विषम-ऊंचा, नीचा, दुर्गजिस में कठिनता से प्रवेश किया जा सके ऐसे गहन-वृक्षवन (वह स्थान जहां वृक्षों की प्रचुरता हो) में। गहितभत्तपाणिए-भक्तपानादि को साथ में लिए हुए। ठिते-स्थित हो रहा है अतः। केणइ-किसी। सुबहुएणा वि-बहुत बड़े। आसबलेण वा-अश्वबल से। हत्थिबलेण वा-हाथियों के बल से। वाअथवा। जोहबलेण-योद्धाओं-सैनिकों के बल से। वा-अथवा। रहबलेण-रथ के बल से। वा-अथवा। चतुरंगेणा वि-'चतुरंगिणी सेना से भी। से-वह / उरंउरेणं-साक्षात् / गेण्हित्तते-ग्रहण करने-पकड़ने में। नो-नहीं। खलु-निश्चय से। सक्का -समर्थ है अर्थात् वह ऐसे विषम और दुर्गम स्थान में बैठा हुआ है कि वहां पर उसे जीते जी किसी प्रकार से पकड़ा नहीं जा सकता। ताहे-तब वह महाबल राजा उसे-अभग्नसेन को। सामेण य- सामनीति से। भेदेण य-भेदनीति से अथवा। उवप्पदाणेण य-उपप्रदान से-दान की नीति से। वीसंभमाणेउं-विश्वास में लाने के लिए। पयत्ते यावि होत्था-प्रयत्नशील हो गया। जे वि यऔर जो भी.।से-उसके-अभग्नसेन के।अब्भिंतरगा-अंतरंग-समीप में रहने वाले मंत्री आदि। सीसगभमाशिष्यकभ्रम-जिन को वह शिष्य समान मानता था, वे लोग अथवा शीर्षकभ्रम- जिन को वह शरीररक्षक होने के कारण शिर अथवा शिर के कवच के समान मानता था ऐसे अंगरक्षक लोग तथा उस के जो। मित्तणाइनियगसयणसंबन्धिपरिजणा य-मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजन थे। ते वि यणं-उनको भी। विपुलेणं-विपुल-बहुत से। धणकणगरयण-धन, सुवर्ण, रत्न तथा। संतसारसावतेन्जेणं-उत्तम सारभूत द्रव्य अर्थात् उत्तमोत्तम वस्तुओं तथा रुपये पैसे से। भिंदति-भेदन करता है, अलग करता है। य-और। अभग्गसेणस्स-अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति को। अभिक्खणं २-बार बार। महत्थाइं-महार्थ-महाप्रयोजन वाले। महग्घाइं-महाघ-विशेष मूल्यवान और। महरिहाई-महार्ह 1. गज, अश्व, रथ और पदाति-पैदल, इन चार अंगों-विभागों वाली सेना चतुरंगिणी सेना कहलाती प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [405