________________ उस छण्णिक छागलिक के अनेक अजों, बकरों, भेड़ों, गवयों (वृषभों), शशकों, मृगविशेषों या मृगशिशुओं, शूकरों, सिंहों, हरिणों, मयूरों और महिषों के शतबद्ध एवं सहस्रबद्ध अर्थात् सौ-सौ तथा हजार-हजार जिन में बन्धे रहते थे ऐसे यूथ वाटक-बाड़े में सम्यक् प्रकार से रोके हुए रहते थे। वहां उसके जिनको वेतन के रूप में रुपया पैसा और भोजन दिया जाता था, ऐसे पुरुष अनेक अजादि और महिषादि पशुओं का संरक्षण तथा संगोपन करते हुए उन-अजादि पशुओं को घरों में रोके रखते थे। छण्णिक छागलिक के रुपया और भोजन लेकर काम करने वाले अनेक नौकर पुरुष सैंकड़ों तथा हजारों अजों यावत् महिषों को मार कर उन के मांसों को कर्तनी से काट कर छणिक को दिया करते थे, तथा उस के अनेक नौकर पुरुष उन मांसों को तवों, कवल्लियों, भर्जनकों और अंगारों पर तलते, भूनते और शूल द्वारा पकाते हुए उन- मांसों को राजमार्ग में बेच कर आजीविका चलाते थे। छण्णिक छागलिक स्वयं भी तले हुए, भूने हुए और शूल द्वारा पकाए हुए उन मांसों के साथ सुरा आदि पंचविध मद्यों का आस्वादनादि करता हुआ जीवन बिता रहा था। उसने अजादि पशुओं के मांसों को खाना तथा मदिराओं का पीना अपना कर्त्तव्य बना लिया था। इन्हीं पापपूर्ण प्रवृत्तियों में वह सदा तत्पर रहता था, यही प्रवृत्तियां उस के जीवन का विज्ञान बनी हुई थीं और ऐसे ही पाप-पूर्ण कामों को उस ने अपना सर्वोत्तम आचरण बना रखा था, तब क्लेशजनक और मलिनरूप अत्यधिक पाप कर्म का उपार्जन कर सात सौ वर्ष की पूर्णायु पाल कर कालमास में काल करके चतुर्थ नरक में, उत्कृष्ट दस सागरोपम स्थिति वाले नारकियों में नारकीय रूप से उत्पन्न हुआ। टीकाछगलपुर नगर में भिक्षार्थ गए हुए गौतम स्वामी ने राजमार्ग में जिस दृश्य का अवलोकन किया था उस के सम्बन्ध में पूछने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी की जिज्ञासानुसार दृष्ट व्यक्ति के पूर्वभव का वर्णन कह सुनाया। उस वर्णन में छण्णिक नामक छागलिक की सावध जीवनचर्या का जो स्वरूप दिखलाया गया है, उस पर से उसको अधार्मिक अधर्माभिरुचि, अधर्मानुगामी और अधर्माचारी कहना सर्वथा उपयुक्त ही है। ___छागलिक-पद के दो अर्थ किए जाते हैं, जैसे कि-(१) छागों के द्वारा आजीविका चलाने वाला, अर्थात् बकरों को बेच कर अपना जीवन-निर्वाह करने वाला। (2) बकरों का वध करने वाला-कसाई अर्थात् बकरों को मार कर उनके मांस को बेच कर अपना जीवन चलाने वाला। परन्तु सूत्रकार को प्रस्तुत प्रकरण में छागलिक का अर्थ कसाई अभिमत है। आत्मा का उपभोग-स्थान शरीर है, शरीर तभी रहता है जब कि शरीर की रक्षा के प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [451