________________ एवं वयासी-तुमं चेव णं देवाणु० ! सगडस्स दारगस्स दण्डं वत्तेहि। तए णं से / सुसेणे अमच्चे महचंदेण रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वझं आणवेति।तं एवं खलु गोतमा ! सगडे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं जाव विहरति। छाया-ततः स शकटो दारकः सुदर्शनाया गृहाद् निष्कासितः सन् अन्यत्र कुत्रचित् स्मृतिं वा 3 अलभमानोऽन्यदा कदाचिद् राहस्यिकं सुदर्शनागृहं अनुप्रविशति 2 सुदर्शनया सार्द्धमुदारान् भोगभोगान् भुंजानो विहरति / इतश्च सुषेणोऽमात्यः स्नातो यावद् सर्वालंकारविभूषितो मनुष्यवागुरया परिक्षिप्तो यत्रैव सुदर्शनागणिकाया गृहं तत्रैवोपागच्छति 2 शकटं दारकं सुदर्शनया गणिकया सार्द्धमुदारान् भोगभोगान् भुंजानं पश्यति 2 आशुरुतो यावत् मिसिमिसीमाणः (क्रुधा ज्वलन्) त्रिवलिकां भृकुटि ललाटे संहत्य शकटं दारकं पुरुषैः ग्राहयति 2 यष्टि यावत् मथितं कारयति 2 अवकोटकबंधनं कारयति-२ यत्रैव महाचंद्रो राजा तत्रैवोपागच्छति 2 करतल यावद् एवमवादीत्-एवं खलु स्वामिन् ! शकटो दारकः ममान्त:पुरेऽपराधः। ततः स महाचंद्रो राजा सुषेणममात्यमेवमवादीत्-त्वमेव देवानुप्रिय ! शकटस्य दारकस्य दण्डं वर्त्तय / ततः स : सुषेणोऽमात्यः महाचन्द्रेण राज्ञाऽभ्यनुज्ञातः सन् शकटं दारकं सुदर्शनां च गणिकां एतेन विधानेन वध्यमाज्ञापयति / तदेवं खलु गौतम ! शकटो दारकः पुरा पुराणानां दुश्चीर्णानां यावद् विहरति। पदार्थ-ततेणं-तदनन्तर / से-वह।सगडे-शकटकुमार।दारए-बालक।सुदरिसणाए-सुदर्शना के। गिहाओ-घर से। निच्छूढे समाणे-निकाला हुआ। अन्नत्थ-अन्यत्र / कत्थइ-कहीं पर भी। सुइं वा ३-स्मृति को अर्थात् वह उस वेश्या के अतिरिक्त और किसी का भी स्मरण नहीं कर रहा था, प्रतिक्षण उस के हृदय में उसी की याद बनी रहती थी और रति-प्रीति अर्थात् उस वेश्या को छोड़ कर और कहीं पर भी उसकी प्रीति नहीं थी, वह उसी के प्रेम में तन्मय हो रहा था, एवं धृति-धीरज अर्थात् वेश्या के बिना किसी भी स्थान पर उस को धैर्य नहीं आता था, प्रतिक्षण उस का मन उस के वियोग में अशांत रहता था, इस तरह वह शकट कुमार स्मृति, रति और धृति को। अलभमाणे-प्राप्त न करता हुआ। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। रहस्सियं-राहसिक-गुप्तरूप से। सुदरिसणागिह-सुदर्शना के घर में। अणुपविसति २-प्रवेश करता है प्रवेश करके। सुदरिसणाए-सुदर्शना के। सद्धिं-साथ। उरालाइंउदार-प्रधान। भोगभोगाई-भोगों का अर्थात् मनोज्ञ शब्द, रूप आदि का। भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ। विहरति-सानन्द समय बिताने लगा। इमं च णं-और इधर / सुसेणे अमच्चे-सुषेण अमात्य-मंत्री / हाते 466 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध