________________ को देख लिया। उसे देखते ही मंत्री के क्रोध का पारा एकदम ऊपर जा चढ़ा। क्रोध के मारे उस का मुख और नेत्र लाल हो उठे। उसने दान्त पीसते हुए क्रोध के आवेश में आकर अपने अनुचरों को उसे-शकट कुमार के पकड़ने और पकड़ कर बांधने तथा अधिक से अधिक पीटने की आज्ञा दी। तदनुसार पकड़ने, बांधने और मारने के बाद उसे महाराज महाचन्द्र के पास ले जाया गया। महाराज महाचन्द्र द्वारा मन्त्री को ही दण्डसम्बन्धी समस्त अधिकार दे देने पर तथा मन्त्री के द्वारा महान् अपराधी ठहरा कर एवं सारे शहर में फिरा कर उसके वध करा डालने का आयोजन किया गया। - जैसा कि प्रथम बतलाया गया है कि जिस व्यक्ति के हाथ में सत्ता हो और साथ में वह कामी एवं विषयी भी हो तब उससे जो कुछ भी अनर्थ बन पड़े वह थोड़ा है। कामी पुरुष का ऐसा करना स्वाभाविक ही है। जिस व्यक्ति पर वह आसक्त हो रहा है उसका कोई और प्रेमी उसे एक आंख भी नहीं भाता। फिर यदि उसके हाथ में कोई राजकीय सत्ता हो तब तो वह उसे यमालय में पहुंचाये बिना कभी छोड़ने का ही नहीं। कामी पुरुषों में ईर्ष्या की मात्रा सबसे अधिक होती है। कामासक्त व्यक्ति अपने प्रेम-भाजन पर किसी दूसरे का अणुमात्र भी अधिकार सहन नहीं कर सकता है और वास्तव में एक वस्तु के जहां दो इच्छुक होते हैं वहां पर सर्वदा एक के अनिष्ट की संभावना बनी ही रहती है। दोनों में जो बलवान् होता है उसका ही उस पर अधिकार रहा.करता है। निर्बल व्यक्ति या तो द्वन्द्व से परास्त हो कर भाग जाता है अथवा प्राणों की आहुति दे कर दूसरों के लिए शिक्षा का आदर्श छोड़ जाता है। मंत्री सुषेण कब चाहता था कि जिस रमणी के सहवास के लिए वह चिरकाल से आतुर हो रहा था, उसमें कोई दूसरा भी भागीदार बने। इसी कारण उसने शकट कुमार और साथ में सुदर्शना को भी कठोर से कठोर दंड दिया जिस का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। . तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से कहा कि गौतम ! इस प्रकार यह छण्णिक छागलिक का जीव अपने पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का फल भोगने के लिए चौथी नरक में गया और वहां भीषण नारकीय यातनाएं भोग लेने के अनन्तर भी शकट कुमार के रूप में अवतीर्ण होकर इस दशा को प्राप्त हो रहा है। सारांश यह है कि इस समय उस के साथ जो कुछ हो रहा है वह उसके पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का ही परिणाम है। -हाते जाव सव्वालंकारविभूसिते-यहां पठित जाव-यावत् पद से अपेक्षितकयबलिकम्मे-इत्यादि पदों का उल्लेख द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। तथाआसुरुत्ते जाव मिसिमिसीमाणे-यहां पठित जाव-यावत्-पद से -रुटे कुविए चण्डिक्किए-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन की व्याख्या भी द्वितीय प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [469