________________ का साथ नहीं छोड़ा था। वह एक दिन सुदर्शना के विशाल भवन की ओर जाता हुआ उसके नीचे से गुजरा। ऊपर झरोखे में बैठी हुई सुदर्शना की जब उस पर दृष्टि पड़ी तो वह एकदम मुग्ध सी हो गई, और उसे ऐसा भान हुआ कि मानो रूप लावण्य की एक सजीव मूर्ति अपने आप को फटे पुराने वस्त्रों से छिपाए हुए जा रही है। जिसे प्राप्त करने के लिए वह ललचा उठी। उसने अपनी एक चतुर दासी को भेज कर उसे ऊपर आने की प्रार्थना की। जैसे कि प्रथम भी बतलाया जा चुका है कि प्रेम हृदय की वस्तु है। प्रेम के साम्राज्य में धनी और निर्धन का कोई प्रश्न नहीं होता। धन-हीन व्यक्ति भी अपने अन्दर हृदय रखता है, उस का हृदय भी तृषातुर जीव की तरह प्रेमोदक का पिपासु होता है। जिस सुदर्शना की भेंट के लिए नगर के अनेकों युवक धन की थैलियां लुटा देने को तैयार रहने पर भी उस की भेंट से वंचित रहते, वही सुदर्शना एक गरीब निर्धन को अपने पास बुलाने और उस से प्रेमालाप करती हुई आत्मसमर्पण करने को सन्नद्ध हो रही है। इस में इतना अन्तर अवश्य है कि यह प्रेम देहाध्यासयुक्त और अप्रशस्त राग से पूर्ण होने के कारण सुगतिप्रद नहीं है। अस्तु, दासी के द्वारा आमंत्रित शकट कुमार ऊपर चला गया। वह वेश्या के साथ स्वच्छन्द भोगों में रत हो गया। इसी भाव को सूत्रकार ने-संपलग्गे-शब्द से बोधित किया है। ___कहते हैं कि मानव के दुर्दिनों के बाद कभी सुदिन भी आ जाते हैं। सुदर्शना के प्रेमातिथ्य ने शकटकुमार के जीवन की काया पलट दी, वह अब उस मानवी वैभव का यथारुचि उपभोग कर रहा है, जिस का उसे प्राप्त होना स्वप्न में भी सुलभ नहीं था। परन्तु उस का यह सुख-मूलक उपभोग भी चिरस्थायी न निकला। राज्यसभा के अधिकारी ने उसे छिन्नभिन्न कर दिया। शासन और सम्पत्ति में बहुत अन्तर है। दूसरे शब्दों में-शासक और धनाढ्य दोनों भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं। धनाढ्य व्यक्ति कितना ही गौरवशाली क्यों न हो परन्तु शासक के सामने आते ही उसका सब गौरव राहुग्रस्त चन्द्रमा की तरह ग्रस्त हो जाता है। शासन में बल है, ओज है और निरंकुशता है। इधर धन में प्रलोभन के अतिरिक्त और कुछ नहीं। राजकीय वर्ग का एक छोटा सा व्यक्ति, जिस के हाथ में सत्ता है, वह एक बड़े से बड़े धनी मानी गृहस्थ को भी कुछ समय के लिए नीचा दिखा सकता है। तात्पर्य यह है कि सत्ता के बल से मनुष्य कुछ समय के लिए जो चाहे सो कर सकता है। सुदर्शना के रूप लावण्य की धाक सारे प्रांत में प्रसृत हो रही थी। वह एक सुप्रसिद्ध कलाकार वेश्या थी। धनिकों को भी विवाह शादी के अवसर पर पर्याप्त द्रव्य व्यय कर के उस के संगीत और नृत्य के अतिरिक्त केवल दर्शन मात्र का ही अवसर प्राप्त होता था। इस प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [461