________________ ले लिया। ऐसा करने का अभिप्राय सम्भवतः यही होगा कि यह चिरंजीवी रहे। अस्तु, कुछ भी हो इस नवजात शिशु के कुछ काल तक जीवित रहने से उसके हृदय में कुछ ढाढ़स अवश्य बन्ध गई और वह उस के पालन-पोषण के निमित्त पूरी-पूरी सावधानी रखने लगी तथा उसके संरक्षणार्थ नियत की गई धायमाताओं के विषय में भी वह बराबर सचेत रहती। इस प्रकार उस नवजात शिशु का बड़ी सावधानी के साथ संरक्षण, संगोपन और सम्वर्धन होने लगा। आज उस के नाम रखने का शुभ दिवस है, इस के निमित्त सुभद्र सार्थवाह ने बड़े भारी उत्सव का आयोजन किया। अपने सगे-सम्बन्धियों के अतिरिक्त नगर के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया और सब का खान-पानादि से यथोचित स्वागत करने के अनन्तर सब के समक्ष उत्पन्न बालक के नाम-करण करने का प्रस्ताव उपस्थित करते हुए उन से कहा कि प्रिय बन्धुओ ! हमारा यह बालक उत्पन्न होते ही एक शकट-गाड़े के नीचे स्थापित किया गया था, इसलिए इस का नाम शकट कुमार रखा जाता है। उपस्थित लोगों ने भी इस नाम का समर्थन किया और उत्पन्न बालक को शुभाशीर्वाद देकर विदा हुए। सूत्रकार ने शकट कुमार के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की सारी जीवनचर्या को द्वितीय अध्ययन में वर्णित उज्झितक कुमार के समान जानने की सूचना करते हुए "सेसं जहा उझियए' इतना कह कर बहुत संक्षेप से सब कुछ कह दिया है। जहां-जहां कुछ नामादि का भेद है, वहां-वहां उसका उल्लेख भी कर दिया है, जोकि सूत्रकार की वर्णनशैली के सर्वथा अनुरूप है। इसके अतिरिक्त उसका यहां पर यदि सारांश दिया जाए तो यह कहना होगा कि-जब 1. यहां प्रश्न होता है कि जब आत्मा के साथ आयुष्कर्म के दलिक ही नहीं तो गाड़े के नीचे रख देने मात्र से बालक चिरंजीवी कैसे हो सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वास्तव में बालक के चिरंजीवी होने का कारण उस का अपना ही आयुष्कर्म है। गाड़े और जीवन-वृद्धि का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि जिस का आयुष्कर्म पर्याप्त है, उसे चाहे गाड़े के नीचे रखो य न रखो उसे तो यथायु जीवित ही रहना है, परन्तु जिसका आयुष्कर्म समाप्त हो रहा है वह गाड़े आदि के नीचे रखने पर भी जीवित नहीं रह सकता। . भद्रा की सन्तति उत्पन्न होते ही मर जाती थी, इससे वह हतोत्साह हो रही थी। उसने सोचा-बहुत उपाय किए जा चुके हैं, परन्तु सफलता नहीं मिल सकी, अतः अब कि बार नवजात शिशु को गाड़े के नीचे रख कर देख लें, संभव है कि इस उपाय से वह बच जाए। इधर इस का ऐसा विचार चल रहा था और उधर गर्भ में आने वाला जीव दीर्घजीवन लेकर आ रहा था। परिणाम यह हुआ कि गाड़े के नीचे रखने पर नवजात बालक मरा नहीं। स्थूल रूप से तो भले ही गाड़ा उस में कारण जान पड़ता हो परन्तु वास्तविकता इस में नहीं है। वास्तविकता तो आयुष्कर्म की दीर्घता ही बतलाती है। क्योंकि गाड़े के नीचे रखना ही यदि जीवनवृद्धि का कारण होता तो अपने को गाड़े के नीचे रख कर प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु से बच जाता, और मृत्यु की अचलता को चलता में बदल देता। 2. नामकरण की इस परम्परा का उल्लेख भी श्री अनुयोगद्वार सूत्र में पाया जाता है, जिसका उल्लेख द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [459