________________ इन अर्थों में प्रथम अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। क्योंकि आगे के प्रकरण में - एवं खलु सामी ! सगडे दारए ममं अन्तेउरंसि अवरद्धे-ऐसा उल्लेख मिलता है। इस पाठ में स्पष्ट लिखा है कि मंत्री ने राजा के पास शिकायत करते हुए अपने अन्तःपुर का वर्णन किया है, जोकि ऊपर के पहले अर्थ का समर्थक ठहरता है। तथा जो आगे-जेणेव सुदरिसणागणियाए गिहे तेणेव-ऐसा लिखा है। इससे सूत्रकार को यही अभिमत है कि सुदर्शना जहां रहती थी, वहां। तात्पर्य यह है कि जब सुषेण मन्त्री ने गणिका को अपनी अर्धांगिनी ही बना लिया, तब सूत्रकार ने-जहां सुदर्शना का घर था-ऐसा उल्लेख क्यों किया? ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इससे सूत्रकार को मात्र जो सुदर्शना को निवास करने के लिए स्थान दे रखा था, वही सूचित करना अभिमत है। __-उज्झियए जाव जम्हा-यहां पठित जाव-यावत् पद से-तए णं दस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियंच चंदसूरदसणं-से लेकर -गोण्णं गुणनिष्फन्नं नामधेन्जं करेंतिइन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का अर्थ द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। मात्र नाम की भिन्नता है। वहां उज्झितक कुमार का नाम है जब कि यहां शकट कुमार का। . -सिंघाडग तहेव जाव सुदरिसणाए-यहां का बिन्दु-तिग-चउक्क-चच्चर महापहपहेसु-इन पदों का तथा-जाव-यावत् पद -जूयखलएसु वेसियाघरएसु- से लेकर-अन्नया कयाइ-यहां तक के पाठ का परिचायक है। इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में दिया गया है। अन्तर केवल इतना है कि प्रस्तुत में शकट कुमार का वर्णन है जब कि वहां उज्झितक कुमार का। .. -भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने-इस पाठ के अनन्तर श्रद्धेय पण्डित मुनि श्री घासीलाल जी म सार्थवाही भद्रा के दोहद का भी उल्लेख करते हैं / वह दोहदसम्बन्धी पाठ निम्नोक्त है.. -तए णंतीसे भद्दाए सत्थवाहीए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए-धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, सपुण्णाओ णं कयत्थाओ णं जाव सुलद्धे तासिं माणुस्सए जम्मजीवियफले जाओ णं बहूणं णाणाविहाणं नयरगोरूवाणं पसूण य जलयरथलयर-खहयरमाईणं पक्खीण य बहूहिं मंसेहिं तलिएहिं भजिएहिं सोल्लेहिं सद्धिं सुरं च महुं च मेरगंच जाइंच सीहुंच पसन्नं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ परिभाएमाणीओ दोहलं विणेति। तं जइ णं अहमवि बहूणं जाव विणिजामि, त्ति कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [463