________________ साधन पूरे-पूरे उपस्थित हों। शरीर को समय पर भोजन भी दिया जाए और पानी भी दिया, जाए तथा अन्य उपयोगी सामग्री भी दी जाए, तब कहीं शरीर सुरक्षित रह सकता है। इस के विपरीत यदि शरीर की सारसंभाल न की जाए तो वह-शरीर ठीक-ठीक काम नहीं दे सकता। शरीर मनुष्य का हो या पशु का हो, उसके ठीक रहते ही उस में आत्मा का निवास संभव हो सकता है, अन्यथा नहीं। छण्णिक इन बातों को खूब समझने वाला था, इसलिए उसने बाड़े में बन्द किए जाने वाले अजादि पशुओं की रक्षा का पूरा-पूरा प्रबन्ध कर रखा था। उन पशुओं के खाने और पीने आदि की व्यवस्था के लिए उसने अनेकों नौकर रख छोड़े थे। वे उन अजादि पशुओं को समय पर चारा आदि देते और पानी पिलाते तथा शीतादि से सुरक्षित रखने का भी पूरा-पूरा प्रबन्ध करते। संरक्षण और संगोपन इन दोनों पदों में पालन-पोषण से सम्बन्ध रखने वाली सारी क्रियाओं का समावेश हो जाता है। सारांश यह है कि छण्णिक छागलिक के बाड़े में अज, भेड़, गवय, वृषभ, शशक; मृग-शिशु या मृगविशेष, शूकर, सिंह, हरिण, मयूर और महिष इन जातियों के सैंकड़ों तथा हज़ारों पशु बन्धे या बन्द किए रहते थे, और इन की पूरी-पूरी देख रेख की जाती थी, जिस के लिए उसने अनेक नौकर रख छोड़े थे। इस के अतिरिक्त उस पशु और मांसविक्रय संबन्धी कारोबार को चलाने के लिए उसने जो नौकर रक्खे हुए थे, उन्हें चार भागों में विभक्त किया जा सकता है, जैसे कि (1) वे नौकर जो केवल पशुओं का पालन पोषण करते अर्थात् उन को बाहर ले जाना, बाड़ों में बन्द करना, घास चारा आदि देना और उन की पूरी-पूरी देखरेख करना। (2) वे नौकर जो अपने घरों में अजादि पशुओं को रखते थे तथा अवश्यकतानुसार छणिक को देते थे। (3) वे नौकर जो मांस के विक्रयार्थ अजादि पशुओं का वध करके उनके मांस को खण्डशः (टुकड़े-टुकड़े) कर के छण्णिक के सुपुर्द कर देते थे। (4) वे अनुचर जो मांस को लेकर नाना प्रकार से तल कर, भून कर और शूल द्वारा पका कर बेचते थे। छण्णिक छागलिक केवल मांसविक्रेता ही नहीं था, अपितु वह स्वयं भी उसे भक्षण किया करता था, वह भी नाना प्रकार की मदिराओं के साथ। इस प्रकार मांसविक्रय और मांसभक्षण के द्वारा उसने जिन पापकर्मों का उपार्जन किया, उन के फलस्वरूप ही वह चौथी नरक में नारकीयरूप से उत्पन्न हुआ और वहां वह भीषणातिभीषण नारकीय असह्य दुःखों को भोगता हुआ अपनी करणी का फल पाने लगा। 452 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध