________________ 4 के अंक से अभिमत पाठ भी तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को यह बतलाया कि जिस दृष्ट व्यक्ति के पूर्वभव का तुम ने वृत्तान्त जानने की इच्छा प्रकट की है, वह पूर्वजन्म में छण्णिक नामक छागलिक था, जो कि नितान्त सावद्यकर्म के आचरण के उपार्जित कर्म के कारण चतुर्थ नरक को प्राप्त हुआ था। वहां की भवस्थिति को पूरा करने के बाद उस ने कहां जन्म लिया, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जायणिंदुया यावि होत्था। जाता जाता दारगा विणिहायमावजंति। तते णं से छण्णिए छागलिए चउत्थीए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए णयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तते णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया, तते णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेटुओ ठवेंति 2 त्ता दोच्चं पि गेण्हावेंति 2 त्ता आणुपुव्वेणं सारक्खंति संगोवेंति, संवड्डेति जहा उज्झियए, जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेटुओ ठविते, तम्हाणं होउ णं अम्हं दारए सगडे नामेणं, सेसं जहा उज्झियए। सुभद्दे लवणे समुद्दे कालगओ माया वि कालगता, से वि सयाओ गिहाओ निच्छूढे। तते णं से सगडे दारए साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे सिंघाडग० तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था,तते णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारयं अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेति रसुदरिसणं दंसणियं गणियं अब्भिंतरए ठावेति 2 त्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। छाया-ततः सा तस्य सुभद्रस्य सार्थवाहस्य भद्रा भार्या जातनिंदुका चाप्यभवत्। जाता जाता दारका विनिघातमापद्यन्ते / ततः स छण्णिक: छागलिकः चतुर्थ्याः पृथिव्या अनन्तरमुवृत्त्य इहैव साहजन्यां नगर्यां सुभद्रस्य सार्थवाहस्य भद्राया भार्यायाः कुक्षौ पुत्रतयोपपन्नः। ततः सा भद्रा सार्थवाही अन्यदा कदाचित् नवसु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु दारकं प्रयाता / ततस्तं दारकमम्बापितरौ जातमात्रं चैव शकटस्याधः स्थापयतः 2 द्विरपि गृह्णीतः 2 आनुपूर्येण संरक्षतः, संगोपयतः संवर्धयतः यथोज्झितकः यावद् यस्मादस्मा४५४ ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध