________________ भी हो गया था। तते णं-तदनन्तर / से-वह। सुसेणे-सुषेण। अमच्चे-अमात्य-मंत्री। तं-उस। सगडंशकट कुमार / दारयं-बालक को।अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। सुदरिसणाए-सुदर्शना / गणियाएगणिका के। गिहाओ-घर से। निच्छुभावेति २-निकलवा देता है, निकलवा कर। दसणीयं-दर्शनीयसुन्दर। सुदरिसणं-सुदर्शना। गणियं-गणिका को। अन्भिंतरए-भीतर अर्थात् पत्नीरूप से। ठावेतिस्थापित करता है अर्थात् रख लेता है और / सुदरिसणाए-सुदर्शना। गणियाए-गणिका के। सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान / माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी। भोगभोगाई-विषयभोगों का। भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ, वह। विहरति-विहरण करने लगा। __मूलार्थ-तदनन्तर सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी, उस के बालक उत्पन्न होते ही मर जाते थे। इधर छण्णिक नामक छागलिक-वधिक का जीव चौथी नरक से निकल कर सीधा इसी साहजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह की भद्रा भार्या के गर्भ में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास पूरे हो जाने पर किसी समय सुभद्रा सार्थवाही ने बालक को जन्म दिया। उत्पन्न होते ही माता पिता उस बालक को शकट-छकड़े के नीचे स्थापित करते हैं और फिर उठा लेते हैं। उठा कर उस का यथाविधि संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करते हैं। उज्झितक कुमार की तरह यावत् जातमात्र-उत्पन्न होते ही हमारा यह बालक शकट-छकड़े के नीचे स्थापित किया गया था, इसलिए इसका शकट कुमार-ऐसा नामकरण किया जाता है अर्थात् माता पिता ने उस का शकंट कुमार यह नाम रक्खा। उस का शेष जीवन उज्झितक कुमार के जीवन के समान जान लेना चाहिए। जब सुभद्र सार्थवाह लवण समुद्र में काल धर्म को प्राप्त हुआ एवं शकट की माता भद्रा भी मृत्यु को प्राप्त हो गई, तब उस शकट कुमार को राजपुरुषों के द्वारा घर से निकाल दिया गया। अपने घर से निकाले जाने पर शकट कुमार साहंजनी नगरी के शृंगाटक (त्रिकोण मार्ग) आदि स्थानों में घूमता, तथा जुआरिओं के अड्डों और शराबखानों में रहता। किसी समय उसकी सुदर्शना गणिका के साथ गाढ़ प्रीति हो गई और वह उसी के वहां रह कर यथारुचि कामभोगों का उपभोग करता हुआ सानन्द समय बिताने लगा। तदनन्तर महाराज सिंहगिरि का अमात्य-मंत्री सुषेण किसी अन्य समय उस शकट कुमार को सुदर्शना वेश्या के घर से निकलवा देता है और सुदर्शना को अपने घर में रख लेता है। घर में स्त्रीरूप से रक्खी हुई उस सुदर्शना के साथ मनुष्यसम्बन्धी उदार-विशिष्ट कामभोगों का यथारुचि उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता है। टीका-प्रस्तुत अध्ययन के प्रारम्भ में सूत्रकार ने साहंजनी नगरी का परिचय कराया 456 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध