________________ में भृति-रुपए पैसे और भक्त-भोजनादि दिया जाता हो, ऐसे पुरुष / बहवे-अनेक। अए य-अजों-बकरों का। जाव-यावत्। महिसे य-महिषों का। सारक्खमाणा-संरक्षण तथा। संगोवेमाणा-संगोपन करते हुए। चिटुंति-रहते थे। अन्ने य-और दूसरे। बहवे-अनेक / पुरिसा-पुरुष। अयाण य-अजों को। जावयावत्। महिसाण य-महिषों को। गिहंसि-घर में। निरुद्धा-रोके हुए। चिट्ठति-रहते थे, तथा। अन्ने य और दूसरे। से-उस के / बहवे-अनेक। पुरिसा-पुरुष। दिण्णभतिभत्तवेयणा-जिन को वेतन के रूप में भृति-रुपया, पैसा तथा भक्त-भोजन दिया जाता हो। बहवे-अनेक। अए य-अजों। जाव-यावत्। महिसे य-महिषों को, जो कि। सयए य-सैंकड़ों तथा। सहस्सए-हज़ारों की संख्या में थे। जीवियाओ-जीवन से। ववरोवेंति २-रहित किया करते थे, करके। मंसाइं-मांस के। कप्पणीकप्पियाइं-कर्तनी-कैंची अथवा छुरी के द्वारा टुकड़े। करेंति-करते थे। 2 त्ता-कर के। छण्णियस्स-छण्णिक। छागलियस्सछागलिक को। उवणेति-ला कर देते थे। अन्ने य-और दूसरे। से-उस के। बहवे-अनेक। पुरिसापुरुष। ताइं-उन। बहुयाई-बहुत से। अयमंसाइं-बकरों के मांसों। जाव-यावत् / महिसमंसाइं-महिषों के मांसों को। तवएसु य-तवों पर। कवल्लीसु य-कड़ाहों में। कंसु य-कन्दुओं पर अर्थात् हांडों में, अथवा कड़ाहियों में अथवा लोहे के पात्र-विशेषों में। भज्जणएसु य-भर्जनकों-भूनने के पात्रों में, तथा।. इंगालेसु य-अंगारों पर। तलेंति-तलते थे। भजेति-पूंजते थे। सोल्लिंति-शूल द्वारा पकाते थे। तलंता य ३-तल कर, भूज कर और शूल से पका कर। रायमग्गंसि-राजमार्ग में। वित्तिं कप्पेमाणा-आजीविका करते हुए। विहरन्ति-समय व्यतीत किया करते थे। अप्पणा वि य णं-और स्वयं भी। से-वह। छण्णियए-छण्णिक। छागलिए-छागलिक। तेहिं-उन। बहूहि-अनेकविध। अयमंसेहि य-बकरों के मांसों। जाव-यावत्। महिसमंसेहि य-महिषों के मांसों, जो कि। सोल्लेहि-शूल के द्वारा पकाये हुए। तलिएहि-तले हुए, और। भज्जिएहि-भूने हुए हैं, के साथ। सुरं च 5 पंचविध सुराओं-मद्य-विशेषों का। आसादेमाणे ४-आस्वादन, विस्वादन आदि करता हुआ। विहरति-जीवन बिता रहा था। तते णंतदनन्तर। से-वह। छण्णिए-छण्णिक। छागलिए-छागलिक। एयकम्मे-इस प्रकार के कर्म का करने वाला। एयप्पहाणे-इस कर्म में प्रधान / एयविज्जे-इस प्रकार के कर्म के विज्ञान वाला तथा। एयसमायारेइस कर्म को अपना सर्वोत्तम आचरण बनाने वाला। कलिकलुसं-क्लेशजनक और मलिन-रूप। सुबहुंअत्यधिक। पावं-पाप। कम्म-कर्म का। समजिणित्ता-उपार्जन कर। सत्तवाससयाई-सात सौ वर्ष की। परमाउं-परम आयु। पालइत्ता-पाल कर-भोग कर। कालमासे-कालमास अर्थात् मरणावसर में। कालंकाल। किच्चा-कर के। उक्कोसेणं-उत्कृष्ट। दससागरोवमठितिएसु-दससागरोपम स्थिति वाले। णेरइएसु-नारकियों में। णेरइयत्ताए-नारकी रूप से।चउत्थीए-चौथी। पुढवीए-पृथ्वी-नरक में। उववनेउत्पन्न हुआ। मूलार्थ-हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में छगलपुर नाम का एक नगर था। वहां सिंहगिरि नामक राजा राज्य किया करता था, जो कि हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। उस नगर में छण्णिक नामक एक छागलिक-छागादि के मांस का व्यापार करने वाला वधिक रहता था, जो कि धनाढ्य, अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द था। 450 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध