________________ पर काफी प्रभाव पड़ा और उन्हें यह सुझाव सुन्दर जान पड़ा। तब उन्होंने मन्त्रियों के बताए हुए नीति-मार्ग के अनुसरण की ओर ध्यान दिया और उस में उन्हें सफलता की कुछ आशाजनक झलक भी प्रतीत हुई। इसीलिए दण्डनीति के प्रयोग की अपेक्षा उन्होंने साम, दान और भेद नीति का अनुसरण ही अपने लिए हितकर समझा और तदनुसार अभग्नसेन को प्रसन्न करने का तथा उसे विश्वास में लाने का आयोजन आरंभ कर दिया और उसके विश्वासपात्र सैनिकों तथा अन्य सम्बन्धिजनों को वे अनेक प्रकार के प्रलोभनों द्वारा उससे पृथक् करने का उद्योग भी करने लगे। एवं अभग्नसेन की प्रसन्नता के लिए समय-समय पर उस विविध प्रकार के बहुमूल्य पुरस्कार भी भेजे जाने लगे जिस से कि उस के साथ मित्रता का गाढ़ सम्बन्ध सूचित हो सके। सारांश यह है कि अभग्नसेन के हृदय से यह भाव निकल जाए कि महाबल नरेश की उस के साथ शत्रुता है, प्रत्युत उसे यही आभास हो कि महाबल नरेश उस का पूरा-पूरा मित्र है, इसके अतिरिक्त उसे यह भी भान न हो कि जिन सैनिकों तथा मंत्रीजनों के भरोसे पर वह अपने आप को एक शक्तिशाली व्यक्ति मान रहा है और जिन पर उसे पूर्ण भरोसा है वे अब उसके आज्ञानुसारी नहीं रहे अर्थात् उसके अपने नहीं रहे और समय आने पर उस की सहायता के बदले उसका पूरा-पूरा विरोध करेंगे। महाबल नरेश तथा उनके मन्त्री आदि ने जिस नीति का अनुसरण किया उस में वे सफल हुए और उन के इस नीतिमूलक व्यवहार का अभग्नसेन पर यह प्रभाव हुआ कि वह महाबल नरेश को शत्रु के स्थान में मित्र अनुभव करने लगा। "अथामे"- इत्यादि पदों की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में-"अथामे"- तथाविधस्थामवर्जितः -"अबले त्ति"-शरीरबलवर्जितः, -"अवीरिए त्ति" -जीववीर्यरहितः -"अपुरिसक्कारपरक्कमे त्ति"-पुरुषकारः पौरुषाभिमानः स एव निष्पादितस्वप्रयोजनः पराक्रमः, तयोनिषेधादपुरुषकारपराक्रमः। "अधारणिजमिति कट्ट"-अधारणीयं धारयितुमशक्यं, परबलं स्थातुं वा शक्य-मिति कृत्वा इति हेतोः। इस प्रकार है अर्थात् अस्थामा इत्यादि चारों पद दण्डसेनापति के विशेषण हैं। इन का अर्थ अनुक्रम से निम्नोक्त है (1) अस्थामा-तथाविध-युद्ध के अनुरूप स्थाम-मनोबल से रहित / (2) अबलशारीरिक शक्ति से रहित / (3) अवीर्य-जीववीर्य-आत्मबल से विहीन। (४)-अपुरुषकारपराक्रम-पुरुषत्व का अभिमान-मैं पुरुष हूं, मेरे आगे कौन ठहर सकता है, इस प्रकार का आत्माभिमान पुरुषकार कहलाता है, उस से जो स्वकार्य में सफलता होती है, उस का नाम पराक्रम है। पुरुषकार और पराक्रम से हीन व्यक्ति अपुरुषकारपराक्रम कहा जाता है। . तथा "अधारणिजं" इस पद के दो अर्थ होते हैं- (1) शत्रु की सेना अधारणीय प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [ 409