________________ दुष्परिणाम का दिग्दर्शन करा दिया जाए तो यह अधिक संभव है कि साधक ब्रह्मचर्य-सदाचार. के विनाश-जन्य कटु परिणाम से भयभीत होकर दुराचार से विरत हो जाए और सदाचार के सौरभ से अपने को अधिकाधिक सुरभित करे। - इसी दृष्टि को सन्मुख रखकर प्रस्तुत चतुर्थ अध्ययन में ब्रह्मचर्य के विनाश अर्थात् मैथुन-प्रवृत्ति की लालसा में आसक्त व्यक्ति के उदाहरण से ब्रह्मचर्य-विनाश के भयंकर दुष्परिणाम का दिग्दर्शन करा कर उससे पराङ्मुख होने की साधक व्यक्ति को सूचना देकर . मानव जीवन के वास्तविक कर्त्तव्य की ओर ध्यान दिलाया गया है। उस अध्ययन का आदिम सूत्र इस प्रकार है मूल-चउत्थस्स उक्खेवो।एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहंजणी णामं णगरी होत्था, रिद्धस्थिमियः। तीसे णं साहंजणीए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए देवरमणे णामं उज्जाणे होत्था।तत्थणं अमोहस्स जक्खस्स जक्खायतणे होत्था पुराणे० / तत्थ णं साहंजणीए णयरीए महचंदे णामं राया होत्था, महता / तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे णामं अमच्चे होत्था। सामभेयदण्ड निग्गहकुसले, तत्थ णं साहंजणीए णयरीए सुदरिसणा णामं गणिया होत्था।वण्णओ।तत्थ णं साहंजणीएणयरीए सुभद्दे णामं सत्थवाहे होत्था, अड्ढे / तस्सणं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा णामं भारिया होत्था अहीण। तस्स णं सुभहस्स सत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगड़े नामं दारए होत्था अहीण। छाया-चतुर्थस्योत्क्षेपः। एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये साहंजनी (साभांजनी) नाम नगरी अभवत्, ऋद्धस्तिमित०। तस्याः साहजन्या नगर्याः बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे देवरमणं नामोद्यानमभवत्। तत्रामोघस्य यक्षस्य यक्षायतनमभूत्, पुराणम् / तत्र साहजन्यां नगर्या महाचन्द्रो नाम राजाऽभूत् महता / तस्य महाचन्द्रस्य राज्ञः सुषेणो नामामात्योऽभूत् सामभेददण्ड निग्रहकुशलः तत्र साहजन्यां नगर्यां सुदर्शना नाम गणिकाऽभवत् / वर्णकः। तत्र साहजन्यां नगर्यां सुभद्रो नाम सार्थवाहोऽभूदाढ्यः / गतियों में ले जाने वाला है, इसलिए संयम के भेदक रूप कारणों के त्यागी मुनिराज इसका कभी सेवन नहीं करते हैं // 16 // यह अब्रह्मचर्य सब अधर्मों का मूल है और महान् से महान् दोषों का समूह रूप है। इसीलिए निग्रंथसाधु इस मैथुन के संसर्ग का सर्वथा परित्याग करते हैं // 17 // 438 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध