________________ है, जो कि दस दिन तक बराबर चालू रहेगा उस में और भी बहुत से प्रतिष्ठित सज्जनों को आमंत्रित किया गया है और वे पधारेंगे भी। तथा आप को आमंत्रण देते हुए महाराज ने कहा है कि आप के लिए इस उत्सवविशेष के उपलक्ष्य में अशनादिक सामग्री यहीं पर उपस्थित की जाए या आप स्वयं ही पधारने का कष्ट उठाएंगे। ____ तदनन्तर वे लोग महाबल नरेश के इस आदेश को लेकर चोरपल्ली के सेनापति अभग्नसेन के पास पहुंचे और उन्होंने विनीत शब्दों में राजा की ओर से दिए गए सन्देश को कह सुनाया। अभग्नसेन ने उन का यथोचित सत्कार किया और पुरिमताल नगर में कूटाकारशाला के निमित्त आरम्भ किए गए महोत्सव में स्वयं वहां उपस्थित हो कर सम्मिलित होने का वचन दे कर उन्हें वापिस लौटा दिया। पाठक यह तो समझते ही हैं कि महाबल नरेश का चोरपल्ली के सेनापति अभग्नसेन को पुरिमताल में बुलाने का क्या प्रयोजन है, और कौन-सी नीति उस में काम कर रही है, तथा उस में विश्वासघात जैसे निकृष्टतम व्यवहार का कितना हाथ है, बड़े से बड़ा योद्धा और वीरपुरुष भी विश्वास में आकर नितान्त कायरों (बुजदिलों) के हाथ से मात खा जाता है। जिस नीति का अनुसरण महाबल नरेश ने किया है वह नीतिशास्त्र की दृष्टि से भले ही आचरणीय हो परन्तु वह प्रशंसनीय तो नहीं कही जा सकती और धर्मशास्त्र की दृष्टि से तो उस की जितनी भी भर्त्सना की जाए, उतनी ही कम है। सूत्रगत "-महं महतिमहालियं-" इत्यादि पदों की व्याख्या प्रकृत सूत्र के व्याख्याकार श्री अभयदेव सूरि के शब्दों में - "महं महतिमहालियं कूडागारसालं त्ति"-महतीं प्रशस्तां, महती चासौ अतिमहालिका च गुर्वी महातीमहालिका ताम् अत्यन्तगुरुकामित्यर्थः। "कूडागारसालं त्ति" कूटस्येव पर्वतशिखरस्येवाकारो यस्याः सा तथा, स चासौ शाला चेति समासः अतस्ताम्। इन पदों की व्याख्या निम्नोक्त है महती का अर्थ है-प्रशस्त-सुन्दर। महातिमहालिका शब्द अत्यधिक विशाल का परिचायक है। कूट पर्वत के शिखर-चोटी का नाम है। कूट के समान जिस का आकारबनावट हो उसे कूटाकारशाला कहते हैं। कोषकार महतिमहालियं पद का संस्कृत रूप "-महातिमहतीं - " ऐसा भी बताते हैं। ___-"उस्सुक्कं जाव दसरत्तं"- यहां पठित जाव-यावत् पद से -"उक्कर अभडप्पवेसं, अदंडिमकुदंडिमं, अधरिमं, अधारणिजं, अणुळूयमुयंगं, अमिलायमल्लदाम, गणिकावरनाडइजकलियं, अणेगतालाचराणुचरियं, पमुइयपक्कीलियाभिरामं, जहारिहंइन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। उच्छुल्क आदि पदों की व्याख्या निम्नोक्त 416 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंथ