________________ सम्बन्धि-परिजणेणं सद्धिं-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। मित्र आदि पदों की व्याख्या द्वितीय अध्याय के टिप्पण में कर दी गई है। ___ "-हाते जाव पायच्छित्ते-" यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित पदों का वर्णन द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। तथा-करयल०- यहां की बिन्दु से विवक्षित पाठ पीछे इसी अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा -महत्थं जाव पाहुडं-यहां पठित जाव-यावत् पद से-महग्धं महरिहं रायारिहं-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों की व्याख्या पीछे की जा चुकी है। तथा-महत्थं जाव पडिच्छति-यहां के जाव-यावत् पद से -महग्धं- आदि पदों का ही ग्रहण करना चाहिए। -असणं ४-तथा-सुरं च ५-एवं-आसाएमाणे ४-यहां के अंकों से विवक्षित पदों की व्याख्या पीछे यथास्थान की जा चुकी है। महाबल नरेश के द्वारा चोरसेनापति अभनसेन का इतना सत्कार क्यों किया गया ? इस का उत्तर स्पष्ट है। यह सब कुछ उसे विश्वास में लाकर पकड़ने का ही उपाय-विशेष है। इसी विषय से सम्बन्ध रखने वाला वर्णन अग्रिमसूत्र में दिया गया है, जो कि इस प्रकार है मूल-ततेणं से महब्बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति 2 एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणु० ! पुरिमतालस्स णगरस्स दुवाराई पिधेह 2 अभग्गसेणं चोरसेणा जीवग्गाहं गेण्हह 2 ममं उवणेह।तते णं ते कोडुंबिय करयल जाव पडिसुणेति 2 त्ता पुरिमतालस्स णगरस्स दुवाराई पिहेंति। अभम्गसेणं चोरसे. जीवग्गाहं गेण्हंति 2 त्ता महब्बलस्स रण्णो उवणेति। तते णं से महब्बले राया अभग्गसेणं चोरसे• एतेणं विहाणेणं वझं आणवेति। एवं खलु गोतमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावती पुरा पुराणाणं जाव विहरति। छाया-ततः स महाबलो राजा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति 2 एवमवादीत्गच्छत यूयं देवानुप्रियाः ! पुरिमतालस्य नगरस्य द्वाराणि पिधत्त 2 अभग्नसेनं चोरसेनापति जीवग्राहं गृह्णीत 2 मह्यमुपनयत / ततस्ते कौटुम्बिक करतल यावत् प्रतिशृण्वन्ति 2 पुरिमतालस्य नगरस्य द्वाराणि पिदधति। अभग्नसेनं चोरसनापतिं जीवग्राहं गृह्णन्ति 2 महाबलाय राज्ञे उपनयन्ति। ततः स महाबलो राजा अभग्नसेनं चोरसेनापतिं एतेन विधानेन वध्यमाज्ञापयति / एवं खलु गौतम ! अभग्नसेनः चोरसेनापतिः पुरा पुराणानां यावत् विहरति। 422 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध