________________ पुरिमताल। णगरे-नगर में। महब्बलेण-महाबल। रण्णा-राजा ने। उस्सुक्के-उच्छुल्क। जाव-यावत् दश दिन का प्रमोद-उत्सव आरंभ किया है, तो क्या आप के लिए अशनादिक यहां पर लाया जाए। उदाहु-अथवा। सयमेव-आप स्वयं ही वहां। गच्छिज्जा?-पधारेंगे ? तते णं-तदनन्तर।से-वह / अभग्गअभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति। कोडुंबियपुरिसे-उन कौटुम्बिक पुरुषों को। एवं वयासी-इस प्रकार बोले। देवाणु !-हे भद्र पुरुषो ! अहण्णं-मैं। पुरिमतालं णगरं-पुरिमताल नगर को। सयमेव-स्वयं ही। गच्छामि-चलूंगा, ऐसे कह कर / ते-उन / कोडुंबियपुरिसे-कौटुम्बिक पुरुषों का। सक्कारेति २-सत्कार करता है, करके। पडिविसज्जेति-उन को विदा करता है। मूलार्थ-तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल नरेश ने पुरिमताल नगर में प्रशस्त एवं बड़ी विशाल और 1 प्रासादीय-मन में हर्ष उत्पन्न करने वाली, 2 दर्शनीय-जिसे देखने पर भी आंखें न थकें, 3 अभिरूप-जिसे देखने पर भी पुनः दर्शन की इच्छा बनी रहे और 4 प्रतिरूप-जिसे जब भी देखा जाए, तब ही वहां कुछ नवीनता प्रतिभासित हो, ऐसी सैंकड़ों स्तम्भों वाली एक कूटाकारशाला बनवाई। तदनन्तर महाबल नरेश ने किसी समय पर ( उस के निमित्त) उच्छुल्क यावत् दशदिन के उत्सव की उद्घोषणा कराई और कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर वे कहने लगे, हे भद्रपुरुषो! तुम शालाटवी चोरपल्ली में जाओ, वहां अभग्नसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के इस प्रकार निवेदन करो- ... हे महानुभाव ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क.यावत् दस दिन पर्यन्त प्रमोद-उत्सवविशेष की उद्घोषणा कराई है तो क्या आप के लिए विपुल अशनादिक और पुष्प, वस्त्र, माला तथा अलंकार यहीं पर उपस्थित किए जाएं अथवा आप स्वयं वहां पधारेंगे? ___तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष महाबल नरेश की इस आज्ञा को दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अर्थात् विनयपूर्वक सुन कर तदनुसार पुरिमताल नगर से निकलते हैं और छोटी-छोटी यात्राएं करते हुए तथा सुखजनक विश्रामस्थानों एवं प्रातःकालीन भोजनों आदि के सेवन द्वारा जहां शालाटवी नामक चोरपल्ली थी वहां पहुंचे और वहां पर उन्होंने अभग्नसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके इस प्रकार निवेदन किया महानुभाव ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दस दिन का प्रमोद उद्घोषित किया है, तो क्या आप के लिए अशनादिक यावत् अलंकार यहां पर उपस्थित किए जाएं अथवा आप वहां पर स्वयं चलने की कृपा करेंगे? तब अभग्नसेन 414 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध