________________ गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणिय विवराणि य पडिजागरमाणे 2 विहरति। ___ छाया-ततस्तस्य मित्रस्य राज्ञः अन्यदा कदाचित् श्रियाः देव्याः योनिशूलं प्रादुर्भूतं चाप्यभवत्। नो संशक्नोति विजयमित्रो राजा श्रिया देव्या सार्द्धमुदारान् मानुष्यकान् भोगभोगान् भुंजानो विहर्तुम् / ततः स विजयमित्रो राजाऽन्यदा कदाचित् उज्झितकं दारकं कामध्वजाया गणिकाया गेहाद् निष्कासयति, निष्कास्य कामध्वजां गणिकामभ्यन्तरे स्थापयति, स्थापयित्वा कामध्वजया गणिकया सार्द्धमुदारान् यावत् विहरति / ततः सः उज्झितको कामध्वजाया गणिकाया गृहाद् निष्कास्यमानः सन् कामध्वजायां गणिकायां मूर्च्छितो, गृद्धो, ग्रथितोऽध्युपपन्नोऽन्यत्र कुत्रापि स्मृतिं च रतिं च धृति चाविन्दमानस्तच्चित्तस्तन्मनास्तल्लेश्यस्तदध्यवसानस्तदर्थोपयुक्तस्तदर्पित-करणस्तद् भावनाभावितः कामध्वजाया गणिकाया बहून्यन्तराणि च छिद्राणि च विवराणि च प्रतिजागरत् 2 विहरति। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर / तस्स मित्तस्स-उस मित्र नामक / रण्णो-राजा की। सिरीए देवीएश्री नामक देवी के। अन्नया कयाइं- किसी अन्य समय। जोणिसूले-योनि-शूल अर्थात् योनि में उत्पन्न होने वाली तीव्र वेदना-विशेष। पाउब्भूते-उत्पन्न। यावि होत्था-हो गया, तब। विजयमित्ते रायाविजयमित्र राजा। सिरीए देवीए-श्री देवी के / सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान / माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी। भोगभोगाई-मनोज्ञ भोगों को। भुंजमाणे-उपभोग करता हुआ। विहरित्तए-विहरण करने में। नो संचाएति-समर्थ नहीं रहा। तते णं- तदनन्तर। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। से विजयमित्ते राया-वह विजयमित्र राजा / उज्झिययं-उज्झितक।दारयं-बालक को। कामझयाए-कामध्वजा। गणियाएगणिका के। गिहाओ-घर से। णिच्छुभावेइ-निकलवा देता है। २.त्ता-निकलवा कर। कामज्झयंकामध्वजा। गणियं-गणिका को। अन्भिंतरियं-भीतर अर्थात् अन्त:पुर में। ठवेति-रख लेता है। कामज्झयाए-कामध्वजा। गणियाए-गणिका के।सद्धिं-साथ। उरालाइं-उदार-प्रधान / जाव-यावत् भोगों का उपभोग करता हुआ। विहरति-समय व्यतीत करता है। तते णं-तदनन्तर। से उज्झियए दारए-वह उज्झितक कुमार बालक।कामझयाए-कामध्वजा। गणियाए-गणिका के। गेहातो-घर से। णिच्छुब्भमाणे समाणे-निकाला हुआ। कामज्झयाए गणियाए-कामध्वजा गणिका में। मुच्छिते-मूर्छित-उसी के ध्यान में पगला हुआ। गिद्धे-गृद्ध-अकांक्षा वाला। गढिते-ग्रथित-स्नेह जाल में बंधा हुआ। अज्झोववन्नेअध्युपपन्न अर्थात् उस में आसक्त हुआ। अन्नत्थ कत्थइ-और कहीं पर भी। सुइंच-स्मृति-स्मरण अर्थात् उसे प्रतिक्षण उसी का स्मरण-याद रहता है, वह किसी और का स्मरण नहीं करता। रतिं च-रति-प्रीति अर्थात् उस वेश्या के अतिरिक्त उस का कहीं दूसरी जगह प्रेम नहीं है। धितिं च-धृति-मानसिक स्थिरता अर्थात् उस वेश्या के सान्निध्य को छोड़ कर उस का मन कहीं स्थिरता एवं शान्ति को प्राप्त नहीं होता है, ऐसा वह उज्झितक कुमार स्मृति, रति और धृति को। अविंदमाणे-प्राप्त न करता हुआ। तच्चित्ते 304 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय - [ प्रथम श्रुतस्कंध