________________ चोरों का मुखिया बना हुआ था। पांच सौ चोर उस के शासन में रहते थे। शालाटवी का निर्माण ही कुछ ऐसे ढंग से हो रहा था कि जिस के बल से वह सर्वप्रकार से अपने को सुरक्षित रक्खे हुए था। चोरपल्ली के सम्बन्ध में सूत्रकार ने जो विशेषण दिए हैं, उन की व्याख्या निम्नोक्त है "-विसम-गिरि-कन्दर-कोलंब-सन्निविट्ठा-" विषमं यगिरेः कन्दरं-कुहरं तस्य यः कोलम्बः- प्रान्तस्तत्र सन्निविष्टा-सन्निवेशिता या सा तथा, कोलंबो हि लोके अवनतं वृक्षशाखाग्रमुच्यते इहोपचारतः कन्दरप्रान्तः कोलंबो व्याख्यातः-" अर्थात् विषम भयानक को कहते हैं / गिरि पर्वत का नाम है। कन्दरा शब्द गुफा का परिचायक है। कोलम्ब शब्द से किनारे का बोध होता है। सन्निवेशित का अर्थ है-संस्थापित। तात्पर्य यह है कि चोरपल्ली की स्थापना भयानक पर्वतीय कन्दराओं-गुफाओं के किनारे पर की गई थी। भीषण कन्दराओं के प्रान्तभाग में चोरपल्ली के निर्माण का उद्देश्य यही हो सकता है कि उस में कोई शत्रु प्रवेश न कर सके और वह खोजने पर भी किसी को उपलब्ध न हो सके और यदि कोई वहां तक जाने का साहस भी करे तो उसे मार्ग में अनेकविध बाधाओं का सामना करना पड़े, जिससे वह स्वयं ही हतोत्साह हो कर वहां से वापिस लौट जाए। कोलम्ब शब्द का अर्थ है-झुकी हुई वृक्ष की शाखा का अग्रभाग। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण . में उपचार (लक्षणा) से कोलम्ब का अर्थ कन्दरा का अग्रभाग अर्थात् किनारा ग्रहण किया गया "-बंसी-कलंक-पागार-परिक्खित्ता-वंशीकलंका-वंशजालमयी वृत्तिः, सैव प्राकारस्तेन परिक्षिप्ता-वेष्टिता या सा तथा-" अर्थात् उस चोरपल्ली के चारों ओर एक वंशजाल (बांसों के समूह) की वृत्ति-बाड़ बनी हुई थी जो कि वहां चोरपल्ली की रक्षा के लिए एक प्राकार का काम देती थी। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार किले के चारों ओर प्राकारकोट (चार दीवारी) निर्मित किया हुआ होता है, जो कि किले को शत्रुओं से सुरक्षित रखता है, इसी भांति चोरपल्ली के चारों ओर भी बांसों के जाल से एक प्राकार बना हुआ था जो कि उसे शत्रुओं से सुरक्षित रखे हुए था। "-छिण्ण-सेल-विसम-प्पवाय-फरिहोवगूढा-छिन्नो विभक्तोऽवयवान्तरापेक्षया यः शैलस्तस्य सम्बन्धिनो ये विषमाः प्रपाता:-गर्तास्त एव परिखा तयोपगूढ़ा-वेष्टिता या सा तथा-" अर्थात् छिन्न का अर्थ है कटा हुआ, या यूं कहें-अपने अवयवों-हिस्सों से विभक्त हुआ। शैल पर्वत का नाम है। विषम भीषण या ऊंचे-नीचे को कहते हैं। प्रपात शब्द से गढ़े का बोध होता है। खाई के लिए परिखा शब्द प्रयुक्त होता है। तात्पर्य यह है कि पहाड़ों के टूट 336 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय ..[ प्रथम श्रुतस्कंध