________________ में बदल जाता है, तथा जीवन की प्रत्येक समस्या उलझ जाती है। पाप के उदय होते ही भाई बहिन का साथ छूट जाता है, सम्बन्धिजन मुख मोड़ लेते हैं। और अधिक क्या कहें, इसके उदय से ही इस जीव पर से माता-पिता जैसे अकारण बन्धुओं एवं संरक्षकों का भी साया उठ जाता है। पितृविहीन अनाथ जीवन पाप का ही परिणाम विशेष है। ___ अभग्नसेन भी आज पितृविहीन हो गया, उसके पिता का देहान्त हो गया। उस की सुखसम्पत्ति का अधिक भाग लुट गया, अभग्नसेन पिता की मृत्यु से अत्यन्त दुःखी होता हुआ, रोता, चिल्लाता और अत्यधिक विलाप करता है और सम्बन्धिजनों के द्वारा धैर्य बंधाने पर किसी तरह से वह कुछ शान्त हुआ और पिता का दाहकर्म उसने समारोह पूर्वक किया। एवं मृत्यु के पश्चात् किए जाने वाले लौकिक कार्यों को भी बड़ी तत्परता के साथ सम्पन्न किया। ___ कुछ समय तो अभग्नसेन को पिता की मृत्यु से उत्पन्न हुआ शोक व्याप्त रहा, परन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया त्यों-त्यों उस में कमी आती गई और अन्त में वह पिता को भूल ही गया। इस प्रकार शोक-विमुक्त होने पर अभग्नसेन अपनी विशाल अटवी चोरपल्ली में सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। पाठक यह तो जानते ही हैं कि अब चोरपल्ली का कोई नायक नहीं रहा। विजयसेन के अभाव से उसकी वही दशा है जोकि पति के परलोक-गमन पर एक विधवा स्त्री की होती है। चोरपल्ली की इस दशा को देख कर वहां रहने वाले पांच सौ चोरों के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि जहां तक बने चोरपल्ली का कोई स्वामी-शासनकर्ता शीघ्र ही नियत कर लेना चाहिए। कभी ऐसा न हो कि कोई शत्रु इस पर आक्रमण कर दे और किसी नियन्ता के अभाव में हम सब मारे जाएं। यह विचार हो ही रहा था कि उन में से एक वृद्ध तथा अनुभवी चोर कहने लगा कि चिन्ता की कौनसी बात है ? हमारे पूर्व सेनापति विजय की सन्तान ही इस पद पर आरूढ़ होने का अधिकार रखती है। यह हमारा अहोभाग्य है कि हमारे सेनापति अपने पीछे एक अच्छी सन्तान छोड़ गए हैं। कुमार अभग्नसेन हर प्रकार से उस पद के योग्य हैं, वे पूरे साहसी अथच नीतिनिपुण हैं। इसलिए सेनापति का यह पद उन्हीं को अर्पण किया जाना चाहिए। आशा है मेरे इस उचित प्रस्ताव का आप सब पूरे जोर से समर्थन करेंगे। बस फिर क्या था, अभनसेन का नाम आते ही उन्होंने एक स्वर से वृद्ध महाशय के प्रस्ताव का समर्थन किया और बड़े समारोह के साथ सब ने मिल कर शुभ मुहूर्त में अभग्नसेन को सेनापति के पद पर नियुक्त करके अपनी स्वामी भक्ति का परिचय दिया। तब से कुमार अभग्नसेन चोरसेनापति के रूप में विख्यात हो गया और वह चोरपल्ली का शासन भी बड़ी तत्परता से करने लगा। तथा पैतृक सम्पत्ति पैतृक पद लेने के साथ साथ प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [387