________________ छाया-ततः स विजयश्चोरसेनापतिः स्कन्दश्रियं भार्यामपहत यावत् पश्यति दृष्ट्वा एवमवदत्-किं त्वं देवानुप्रिये ! अपहत यावद् ध्यायसि ? ततः सा स्कंधश्री: विजयमेवमवादीत्-एवं खलु देवनु! मम त्रिषु मासेषु यावद् ध्यायामि। ततः स विजश्चोरसेनापतिः स्कन्दश्रियः भार्याया अन्तिके एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य स्कन्दश्रियं भार्यामेवमवादीत् - यथासुखं देवानुप्रिये इत्येतमर्थं प्रतिश्रृणोति / ततः सा स्कन्द श्री: भार्या विजयेन चोरसेनापतिना अभ्यनुज्ञाता सती ह्रष्ट बहुभिर्मित्र० यावदन्याश्र्चि वहुभिश्चौरमहिलाभिः सार्द्ध सपरिवृता स्नाता यावद् विभूषिता विपुलमशंन 4 सुरां 5 आस्वादयन्ती 4 विहरति। जिमितभुक्तोत्तरागता पुरुषनेपथ्या सन्नद्धबद्ध यावदाहिंडमाना दोहदं विनयति / ततः सा स्कन्दश्री भार्या सम्पूर्णदोहदा, संमानितदोहदा, विनीतदोहदा, व्युच्छिन्नदोहदा, सम्पन्नदोहदा तं गर्भं सुखसुखेन परिवहति। ततः सा स्कन्दश्री: चोरसेनापत्नी नवसु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु दारकं प्रयाता। ___ पदार्थ-तते णं- तदन्तर / से-वह। विजय-विजय नामक। चोरसेणावती-चोर-सेनापति चोरों का नायक। खंदसिरि भरियं-स्कन्दश्री स्त्री को जो कि। ओहत-कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य के विवेक से विकल। जाव-यावत् आर्तध्यान से युक्त है। पासतिर-देखता है, देखकर। एंव-इस प्रकार। वयासीकहने लगा। देवाणु० -हे शुभगे तुमं-तू। किण्णं-क्यों। ओहत-कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य के भान से शून्य हो कर / जाव०१-यावत् / झियासि-आर्तध्यान कर रही हो? तते णं-तदनन्तर। सा -वह। खंदसिरिस्कन्धश्री। विजयं- विजय के प्रति। एंव - इस प्रकार। वयासी- कहने लगी। एंव खलु- इस प्रकार निश्चय ही। देवाणु०- !-हे देवानुप्रिय! अर्थात् हे स्वामिन् ! मम्- मुझे गर्भ धारण किये हुए। तिण्हं मासाणं -तीन मास हो गए हैं, अब मुझे एक दोहद उत्पन्न हुआ है, उस की पूर्ति न होने से मैं कर्तव्याकर्त्तव्य के विवेक से रहित हुई। जाव२- यावत् / झियामि - आर्तध्यान कर रही हूं। तते णं 1. ओहत जाव पासति-यहां पठित जाव-यावत्- पद से-ओहतमणसंकप्पं-इसका ग्रहण समझना। इस पद के दो अर्थ पाए जाते हैं, जोकि निम्रोक्त हैं क-अपहतमनःसंकल्पा-अपहतो मनसः संकल्पो यस्याः सा-अर्थात् संकल्प-विकल्प रहित मन वाली। तात्पर्य यह है कि जिसके मन के संकल्प नष्ट हो चके हैं. वह स्त्री। __ ख-अपहतमनःसंकल्पा-कर्त्तव्याकर्त्तव्यविवेकविकला-अर्थात् कर्त्तव्य (करने के योग्य) और अकर्त्तव्य (न करने योग्य) के विवेक से रहित स्त्री। प्रस्तुत में -ओहतमणसंकप्पं-यह पद द्वितीयान्त विवक्षित है, अत: यहां द्वितीयान्त अर्थ ही ग्रहण करना चाहिए। 2. "मासाणं जाव झियामि-" यहां पठित जाव-यावत्- पद से "बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूते, धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ-से लेकर -तं जइ णं अहमवि जाव विणिज्जामि त्ति कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्खा भुक्खा-से लेकर-ओहयमणसंकप्पा-यहां तक के पाठ का ग्रहण करना 372 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध