________________ लिया। दोहद-पूर्ति के सारे साधन एकत्रित हो गए। सब से प्रथम उसने अपनी सहेलियों तथा अन्य सम्बन्धिजनों की महिलाओं के साथ विविध प्रकार के भोजनों का उपभोग किया। सहभोज के अनन्तर सभी एकत्रित होकर किसी निश्चित स्थान में गईं। सभी ने पुरुष-वेष से अपने आप को विभूषित करके सैनिकों की भान्ति अस्त्र-शस्त्रादि से सुसज्जित किया और सैनिकों या शिकारी लोगों की तरह धनुष को चढ़ा कर नाना प्रकार के शब्द करती हुईं वे शालाटवी नामक चोरपल्ली के चारों ओर भ्रमण करने लगीं। इस प्रकार अपने दोहद की यथेच्छ पूर्ति हो जाने पर स्कन्दश्री अपने गर्भ का यथाविधि बड़े आनन्द और उत्साह के साथ पालन-पोषण करने लगी। तदनन्तर नौ मास पूरे हो जाने पर उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। ___इस कथा- सन्दर्भ में गर्भवती स्त्री के दोहद की पूर्ति कितनी आवश्यक है तथा उसकी अपूर्ति से उसके शरीर तथा गर्भ पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ता है-इत्यादि बातों के.परिचय के लिए पर्याप्त सामग्री मिल जाती है। ___ "समाणी हट्ठ० बहूहिं"-यहां के बिन्दु से-तुटुचित्तमाणंदिया, पीइमणा, परमसोमणस्सिया, हरिसवसविसप्पमाणहि यया, धाराह यकलंबुगं पिव, समुस्ससिअरोमकूवा-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का भावार्थ निम्नोक्त है (1) हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया-हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता, हृष्टं हर्षितं हर्षयुक्तं दोहदपूर्त्याश्वासनेन अतीव प्रमुदितं, तुष्टं सन्तोषोपेतं, धन्याऽहं यन्मे पति:मदीयं दोहदं पूरयिष्यतीति कृतकृत्यम्, हृष्टं तुष्टं च यच्चित्तं तेनानन्दिता, हृष्टतुष्टचित्तानंदिता-अर्थात् विजयसेन चोरसेनापति द्वारा दोहद की पूर्ति का आश्वासन मिलने से हृष्ट और "-मैं धन्य हूं जो मेरे पतिदेव मेरे दोहद की पूर्ति करेंगे-" इस विचार से सन्तुष्ट चित्त के कारण वह स्कन्दश्री अत्यन्त आनन्दित हुई। अथवा-हर्ष को प्राप्त हृष्ट और सन्तोष को उपलब्ध तुष्ट-कृतकृत्य चित्त होने के कारण जो आनन्द को प्राप्त कर रही है, उसे 'हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता' कहते हैं। चित्त के हृष्ट एवं तुष्ट होने के कारण यथा-प्रसङ्ग भिन्न-भिन्न समझ लेने चाहिएं। __ अथवा-हृष्टतुष्ट-अत्यन्त प्रमोद से युक्त चित्त होने के कारण जो आनन्दानुभव कर रही है, उसे "हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता" कहते हैं। (2) पीइमणा-प्रीतिमनाः, प्रीतिस्तृप्तिः उत्तमवस्तुप्राप्तिरूपा सा मनसि यस्याः सा प्रीतमना:-तृप्तचित्ता-अर्थात् जिस का मन अभिलषित उत्तम पदार्थों की प्राप्तिरूप तृप्ति को उपलब्ध कर रहा है, उस स्त्री को प्रीतमना कहते हैं। 376 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध