________________ कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों का भावार्थ पीछे दिया जा चुका है। गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ कथन किया, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं___मूल-एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पुरिमताले नामं नगरे होत्था, रिद्धः। तत्थ णं पुरिमताले उदिए नामं राया होत्था महयाः। तत्थ णं पुरिमताले निण्णए णामं अंडयवाणियए होत्था, अड्ढे जाव अपरिभूते, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं णिण्णयस्स अंडयवाणियगस्स बहवे पुरिसा दिण्णभति-भत्तवेयणा कल्लाकल्लिं कोद्दालियाओ य पत्थियापिडए य गेण्हन्ति, पुरिमतालस्स नगरस्स परिपेरंतेसु बहवे काइअंडए य घूइअंडए य पारेवइ-टिट्टिभि-बगि-मयूरी-कुक्कुडि-अंडए य अन्नेसिं चेव बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अंडाइं गेण्हंति गेण्हेत्ता पत्थियापिडगाइं भरेंति,२ जेणेव निण्णए अंडवाणियए तेणेव उवा० 2 निण्णयस्स अंडवाणियगस्स उवणेति। तते णं तस्स निण्णयस्स अंडवाणियगस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ बहवे काइअंडए य "जाव कुक्कुडि-अंडए य अन्नेसिं च बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अंडए तवएसु य कवल्लीसु य कंदूसुय भजणएसु य इंगालेसु य तलेंति भजति सोल्लिंति तलेता भजेंता सोल्लंता य - 1. "रिद्ध" यहां के बिन्दु से जिन पदों का ग्रहण सूत्रकार को अभिमत है, उन के सम्बन्ध में दूसरे अध्याय में लिखा जा चुका है। 2. "महया०" यहां के बिन्दु से जो अपेक्षित है इस का उत्तर द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। 3. "अड्ढे जाव अपरिभूते" यहां पठित "-जाव-यावत् -" पद से जिन पदों का आश्रयण सूत्रकार को अभिमत है उनका विवरण द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। 4. "अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे" यहां पठित –जाव-यावत्- पद से ग्रहण किए जाने वाले पदों का वर्णन प्रथम अध्ययन में किया गया है। 5. यहां पठित-जाव-यावत्- पद से "-घूइ-अण्डए, पारेवइअण्डए, टिट्टिभि-अण्डए बगिअण्डए, मयूरी-अण्डए-" इन पदों का ग्रहण सूत्रकार को अभिमत है, तथा "-काइअण्डएहि य जाव कुक्कुडि-अण्डएहि-" यहां पठित "-जाव-यावत्-" पद से पूर्वोक्त पदों का ही आश्रयण करना चाहिए, यहां मात्र प्रथमा और तृतीया विभक्ति का अन्तर है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [357