________________ चोरसेनापतेः स्कन्दश्रियो भार्यायाः कुक्षौ पुत्रतयोपपन्नः। ततस्तस्य स्कन्दश्रियो भार्यायाः अन्यदा कदाचित् त्रिषु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु अयमेतद्पः दोहदः प्रादुर्भूतः-धन्यास्ता अम्बाः-४ या बहभिर्मित्र-ज्ञाति-निजक-स्वजन-संबन्धि-परिजन-महिलाभिः, अन्याभिश्चोर महिलाभिः सार्द्ध संपरिवृताः स्नाता : यावत् प्रायश्चित्ताः सर्वालंकारविभूषिताः विपुलमशनं पानं खादिमं स्वादिमं सुरां च 5 आस्वादयमानाः 4 विहरन्ति। जिमितभुक्तोत्तरागताः, पुरुषनेपथ्याः सन्नद्ध० यावत् प्रहरणाः फलकैः निष्कृष्टैरसिभिः, अंसागतैस्तुणैः सजीवैर्धनुर्भिः समुत्क्षिप्तैः शरैः समुल्लासिताभिर्दामभिः लम्बिताभिरवसरिताभिरुरूघंटाभिः क्षिप्रतूरेण वाद्यमानेन महतोत्कृष्ट० यावत् समुद्ररवभूतमिव कुर्वाणाः शालाटव्यां चोरपल्ल्यां सर्वतः समन्तादवलोकयन्त्यः 2 आहिण्डमानाः 2 दोहदं विनयन्ति / तद् यद्यहमपि यावद् विनयामि इति कृत्वा तस्मिन् दोहदे अविनीयमाने यावद् ध्यायति। पदार्थ-से णं-वह निर्णय नामक अण्डवाणिज-अण्डों का व्यापारी। तओ-वहां से-नरक से। अणंतरं-अन्तर रहित। उव्वट्टित्ता-निकल कर। इहेव-इसी। सालाडवीए-शालाटवी नामक। चोरपल्लीएचोरपल्ली में। विजयस्स-विजय नामा। चोरसेणावइस्स-चोरसेनापति की। खंदसिरीए-स्कन्दश्री। भारियाए-भार्या की। कुच्छिंसि-कुक्षि में-उदर में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। तते णं-तदनन्तर। तीसे-उस। खंदसिरीए- स्कंदश्री। भारियाए-भार्या को। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। तिण्हं- मासाणं-तीन मास / बहुपडिपुण्णाणं-परिपूर्ण होने पर। इमे-यह। एयारूवे-इस प्रकार का। दोहले-दोहद-गर्भवती स्त्री का मनोरथ। पाउब्भूते-उत्पन्न हुआ। ताओ-वे। अम्मयाओ ४माताएं 4 / धण्णाओ णं-धन्य हैं। जाणं-जो। बहहिं-अनेक। मित्त-मित्र। णाइ-ज्ञातिजन। नियगनिजक-पिता, पुत्र आदि। सयण-स्वजन-चाचा, भाई आदि। सम्बन्धि-सम्बन्धी-श्वसुर, साला आदि। परियणं-परिज़न-दास आदि की। महिलाहिं-स्त्रियों के तथा। अन्नाहि य-अन्य। चोरमहिलाहिं-चोरमहिलाओं के। सद्धिं-साथ। संपरिवुडा-संपरिवृत-घिरी हुईं तथा। ण्हाया-नहाई हुईं। जाव-यावत्। पायच्छित्ता-अशुभ स्वप्नों के फल को विफल करने के लिए प्रायश्चित के रूप में तिलक और . 1. "-अम्मयाओ४- यहां के 4 के अंक से -"सपुण्णाओणं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन का भावार्थ निम्नोक्त है वे माताएं सपुण्या-पुण्यशालिनी हैं, वे माताएं कृतार्थ हैं-उन के प्रयोजन सिद्ध हो चुके हैं, वे माताएं कृतपुण्या हैं-उन्होंने ही पुण्य की उपार्जना की है, तथा वे माताएं कृतलक्षणा हैं-संपूर्ण लक्षणों से युक्त हैं। 2. "ण्हाया जाव पायच्छित्ता"-यहां पठित जाव-यावत् पद से "-कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-" इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। इन पदों की व्याख्या द्वितीय अध्याय में की जा चुकी है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [365