________________ मूर्च्छित और गृद्ध आदि पदों की व्याख्या पीछे की जा चुकी है। पाठक वहां से देख सकते हैं। "एयकम्मे 4" यहां पर दिया गया 4 का अंक उसके साथ के बाकी तीन पदों का ग्रहण करना सूचित करता है। वे तीनों पद इस प्रकार हैं-"एयप्पहाणे, एयविज्जे, एयसमुदायारे"। इन का भावार्थ पीछे लिखा जा चुका है, पाठक वहां पर देख सकते हैं। "वद्धेहिंति" इस क्रिया-पद के दो अर्थ देखने में आते हैं। प्रथम अर्थ-पालन पोषण करेंगे-यह प्रसिद्ध ही है और वृत्तिकार इसका दूसरा अर्थ करते हैं। वे लिखते हैं "वद्धेहिंति"त्ति वर्द्धितकं करिष्यतः अर्थात् उसे नपुंसक बनावेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो "-उसकी पुरुषत्व शक्ति को नष्ट कर डालेंगे-" यह कह सकते हैं। आधुनिक शताब्दी (किसी सम्वत् के सैंकड़े के अनुसार एक से सौ वर्ष तक का समय) में उपलब्ध विपाकसूत्र की प्रतियों में "-तते णं तं दारयं अम्मापितरो जायमेत्तकं वद्धेहिंति 2 नपुंसगकम्मं सिक्खावेहिति। तते णं तस्स दारगस्स अम्मापितरो णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवंणामधेनं करेहिंति, होउणं पियसेणे णामणपुंसए-" ऐसा ही प्रायः पाठ उपलब्ध होता है। परन्तु हमारे विचारानुसार उस के स्थान में-"-तते णं. तं दारयं अम्मापितरो जायमेत्तकं वद्धेहिंति। तते णं तस्स दारगस्स अम्मापितरो णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवंणामधेनं करेहिंति, होउणं पियसेणे णामं नपुंसए, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापितरो तं दारगं नपुंसगकम्मं सिक्खावेहिंति-" ऐसा पाठ होना चाहिए। इस का भावार्थ निम्नोक्त है माता पिता उत्पन्न होते उस बालक को नपुंसक-पुरुषत्व शक्ति से हीन करेंगे तथा बारहवें दिन उस बालक का प्रियसेन नपुंसक ऐसा नामकरण करेंगे, तदनन्तर उसे नपुंसक का कर्म सिखलावेंगे। यदि इस में इतना परिवर्तन या संशोधन न किया जाए तो एक महान् दोष आता है। वह यह कि जिसका अभी नामकरण संस्कार भी नहीं हुआ तथा जिसने अभी माता के दूध का भी सम्यक्तया पान नहीं किया, एवं जो सर्वथा अबोध है, ऐसे सद्योजात शिशु को किसी स्वतन्त्र विषय का अध्ययन कैसे कराया जा सकता है ? अर्थात् नपुंसक कर्म कैसे सिखाया जा सकता है ? यदि नामकरण संस्कार के अनन्तर नपुंसक-कर्म की शिक्षा का उल्लेख हो जाए तो कुछ संगत हो सकता है। उसका कारण यह है कि वहां "तते" यह पद दिया है, जिस में बड़ी गुंजाइश है। "तते" का अर्थ है-तत् पश्चात् / तात्पर्य यह है कि नामकरण संस्कार के 324 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध