________________ पहाड़ के नीचे की भूमि में वानर कुल में वानर-बन्दर के शरीर को धारण करेगा। वहां युवावस्था को प्राप्त होता हुआ तिर्यंच-योनि के विषय भोगों में अत्यधिक आसक्ति धारण करेगा। तथा यौवन को प्राप्त हो कर भविष्य में मेरा कोई प्रतिद्वन्द्वी न बन जाए, इस विचारधारा से या यूं कहें अपने भावी साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए वह उत्पन्न हुए वानर शिशुओं का अवहनन किया करेगा। तात्पर्य यह है कि -सांसारिक विषय-वासनाओं में फंसा हुआ वह बन्दर प्राणातिपात (हिंसा) आदि पाप कर्मों में व्यस्त रह कर महान् अशुभ कर्मवर्गणाओं का संग्रह करेगा। वहां की भवस्थिति पूरी होने पर वानर-शरीर का परित्याग कर के इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका के कुल में पुत्र-रूप से जन्म लेगा अर्थात् किसी वेश्या का पुत्र बनेगा। जन्मते ही उस के माता-पिता उसे वर्द्धितक अर्थात् नपुंसक बना देंगे, और बारहवें दिन बड़े आडम्बर के साथ उस का "प्रियसेन" यह नामकरण करेंगे। प्रियसेन बालक वहां आनन्द पूर्वक बढ़ेगा और उस के माता-पिता किसी अच्छे अनुभवी योग्य शिक्षक के पास उस के शिक्षण का प्रबन्ध करेंगे और प्रियसेन वहां पर नपुंसक-कर्म की शिक्षा प्राप्त करेगा। तात्पर्य यह है कि गाना, बजाना और नाचना आदि जितने भी नपुंसक के काम होते हैं, वे सब के सब उसको सिखलाये जाएंगे, और प्रियसेन उन्हें दिल लगा कर सीखेगा तथा थोड़े ही समय में वह उन कामों में निपुणता प्राप्त कर लेगा। ____ बाल्यभाव को त्याग कर जब वह युवावस्था में पदार्पण करेगा उस समय शिक्षा और बुद्धि के परिपाक के साथ-साथ रूप, यौवन तथा शरीर लावण्य के कारण सबको बड़ा सुन्दर लगने लगेगा। तात्पर्य यह है कि वह बड़ा ही मेधावी अथच परम सुन्दर होगा। वह अपने विद्या-सम्बन्धी मन्त्र, तन्त्र और चूर्णादि के प्रयोगों से इन्द्रपुर में निवास करने वाले धनाढ्य वर्ग को अपने वश में करता हुआ आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करने वाला होगा। इस प्रकार पूंजीपतियों को काबू में करके वह प्रियसेन सांसारिक विषय-वासनाओं से वासित होकर, किसी से किसी प्रकार का भी भय न रखता हुआ यथेच्छरूप से विषय भोगों का उपभोग करेगा। इस भांति सांसारिक सुखों का अनुभव करता हुआ वह 121 वर्ष की आयु को भोगेगा। आयु के समाप्त होने पर वह रत्नप्रभा नाम के प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर वह सरीसृपों-छाती के बल से चलने वाले सर्प आदि अथवा भुजा से चलने वाले नकुल, मूषक आदि प्राणियों की योनियों में जन्म लेगा। इस तरह से प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र के जीव की भान्ति वह उच्चावच योनियों में भ्रमण करता हुआ अन्ततोगत्वा चम्पा नाम की प्रख्यात नगरी में महिष-रूपेण-भैंसे के रूप में उत्पन्न होगा। यहां पर भी उसे शान्ति नहीं 322 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय - . [प्रथम श्रुतस्कंध