________________ नाम राजाऽभूत्। तस्य पुरिमतालस्य नगरस्योत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे देशप्रान्ते अटवीसंश्रिता, शालाटवी नाम चोरपल्ल्यभवत्, विषम-गिरि-कन्दर-कोलम्बसंनिविष्टा, वंशीकलंकप्राकार-परिक्षिप्ता, छिन्नशैलविषमप्रपातपरिखोपगूढा, अभ्यन्तर-पानीया, सुदुर्लभजलपर्यन्ता, अनेक-खंडी, विदितंजनदत्तनिर्गमप्रवेशा, सुबहोरपि मोषव्यावर्तकजनस्य दुष्प्रध्वस्या चाप्यभवत् / तत्र शालाटव्यां चोरपल्ल्यां विजयो नाम चोरसेनापतिः परिवसति अधार्मिको यावत्, लोहितपाणिः, बहुनगरनिर्गतयशाः, शूरो, दृढप्रहारः, साहसिकः, शब्दवेधी, असियष्टिप्रथममल्लः। स तत्र शालाटव्यां चौरपल्लयां पञ्चानां चोरशतानामाधिपत्यं यावत् विहरति। ____ पदार्थ-तच्चस्स-तृतीय अध्ययन की। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जान लेनी चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जंबू ! तेणं कालेणं-उस काल में तथा। तेणं समएणं-उस समय में। पुरिमताले-पुरिमताल। णाम-नामक। णगरे-नगर। होत्था-था। रिद्ध-जोकि ऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-भय से रहित तथा समृद्ध-धनधान्यादि से सम्पन्न, था। तस्स णं-उस। पुरिमतालस्स-पुरिमताल नामक / णगरस्स-नगर के। उत्तरपुरथिमे-उत्तर पूर्व। दिसीभाए-दिग्भाग मेंदिशा में अर्थात् ईशान कोण में। अमोहदंसी-अमोघदर्शी नामक। उजाणे-उद्यान था। तत्थ णं-वहां पर। अमोहदंसिस्स-अमोघदर्शी नामक। जक्खस्स-यक्ष का। आययणे-आयतन-स्थान। होत्था-था। तत्थ णं-उस। पुरिमताले-पुरिमताल नगर में। महब्बले-महाबल। णाम-नामक। राया-राजा। होत्था-था। तस्सणं-उस परिमतालस्स-परिमतालाणगरस्स-नगर के। उत्तरपरत्थिम-उत्तरपर्व। दिसीभाए-दिग्भाग में अर्थात् ईशान कोण में। देसप्पंते-देशप्रान्त-सीमा पर। अडवीसंठिया-अटवी में स्थित / सालाडवीशालाटवी। णाम-नामक / चोरपल्ली-चोर-पल्ली-चोरों के निवास का गुप्तस्थान / होत्था-था, जो कि। विसमगिरिकन्दर-पर्वत की विषम-भयानक कन्दरा-गुफा के।कोलंब-प्रान्तभाग-किनारे पर। सन्निविट्ठासंस्थापित थी। बंसीकलंक-बांस की जाली की बनी हुई बाड़, तद्प। पागार-प्राकार-कोट से। परिक्खित्ता-परिक्षिप्त-घिरी हुई थी। छिण्ण-विभक्त अर्थात् अपने अवयवों से कटे हुए। सेल-शैलपर्वत के। विसम-विषम-ऊंचे-नीचे। प्पवाय-प्रपात-गढ़े, तद्प। फरिहोवगूढा-परिखा-खाई से युक्त। अब्भिंतरपाणिया-अन्तर्गत जल से युक्त अर्थात् उसके अन्दर जल विद्यमान था। सुदुल्लभजलपेरंताउसके बाहर जल अत्यन्त दुर्लभ था। अणेगखंडी-भागने वाले मनुष्यों के मार्गभूत अनेकों गुप्तद्वारों से युक्त। विदितजणदिण्णनिग्गमप्पवेसा-ज्ञात मनुष्य ही उस में से निर्गम और प्रवेश कर सकते थे, तथा। सुबहुयस्स वि-अनेकानेक। कूवियस्स-मोषव्यावर्तक-चोरों द्वारा चुराई हुई वस्तु को वापिस लाने के लिए उद्यत रहने वाले। जणस्स यावि-जन-मनुष्यों द्वारा भी। दुप्पहंसा-दुष्प्रध्वस्या अर्थात् उस का नाश न किया जा सके, ऐसी। होत्था-थी। तत्थ णं-वहां अर्थात् उस। सालाडवीए-शालाटवी नामक। चोरपल्लीए-चोरपल्ली में। विजए णाम-विजय नामक। चोरसेणावती-चोरसेनापति-चोरों का नायक। परिवसति-रहता था, जो कि। अहम्मिए-अधार्मिक। जाव-यावत्। लोहियपाणी-लोहितपाणि अर्थात् प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [333