________________ और "मिसिमिसीमाणे" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है। इन पदों से मित्र नरेश के क्रोधातिरेक को बोधित कराया गया है। "-तिवलियभिउडिं निडाले साहट्ट-" इन पदों की व्याख्या वृत्तिकार ने-त्रिवलिकां भृकुटिं लोचनविकारविशेष ललाटे संहृत्य-विधाय-" इन शब्दों से की है। अर्थात् त्रिवलिका-तीन वलिओं-रेखाओं से युक्त को कहते हैं। भृकुटि-लोचनविकारविशेष भौंह को कहते हैं। तात्पर्य यह है कि मस्तक पर तीन रेखाओं वाली भृकुटि (तिउड़ी) चढ़ा कर। "-अवओडगबंधणं-अवकोटकबन्धनं-" की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में निम्नलिखित है "-अवकोटनेन च ग्रीवायाः पश्चाद्भागनयनेन बन्धनं यस्य स तथा तम्-" अर्थात् जिस बन्धन में ग्रीवा को पृष्ठ-भाग में ले जा कर हाथों के साथ बान्धा जाए उस बन्धन को अवकोटक-बन्धन कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में यह कथन किया गया है कि महीपाल मित्र ने उज्झितक कुमार को मथ डाला अर्थात् जिस प्रकार दही मंथन करते समय दही का प्रत्येक कण-कण मथित हो जाता है ठीक उसी प्रकार उज्झितक कुमार का भी मन्थन कर डाला। तात्पर्य यह है कि उसे इतना पीटा गया कि उसका प्रत्येक अंग तथा उपांग ताड़ना से बच नहीं सका, और राजा की ओर से नगर के मुख्य-मुख्य स्थानों पर उस की इस दशा का कारण उस का अपना ही दुष्कर्म है, ऐसा उद्घोषित करने के साथ-साथ बड़ी निर्दयता के साथ उस को ताड़ित एवं विडम्बित किया गया और अन्त में उसे वध्यस्थान पर ले जा कर शरीरान्त कर देने की आज्ञा दे दी गई। ___ मित्रनरेश की इस आज्ञा के पालन में उज्झितक कुमार की कैसी दुर्दशा की गई थी, यह हमारे सहृदय पाठक प्रस्तुत अध्ययन के आरम्भ में ही देख चुके हैं। पाठकों को स्मरण होगा कि वाणिजग्राम नगर में भिक्षार्थ पधारे हुए श्री गौतम स्वामी ने राजमार्ग पर उज्झितक कुमार के साथ होने वाले परम कारुणिक अथच दारुण दृश्य को देख कर ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से उसके पूर्व-भव सम्बन्धी वृत्तान्त को जानने की इच्छा प्रकट करते हुए भगवान् से कहा था कि भदन्त ! यह इस प्रकार की दुःखमयी यातना भोगने वाला उज्झितक कुमार नाम का व्यक्ति पूर्व-भव में कौन था ? इत्यादि। ___अनगार गौतम गणधर के उक्त प्रश्न के उत्तर में ही यह सब कुछ वर्णन किया गया है। क्रोधज्वालया ज्वलन्निति बोध्यम्। अर्थात् -रोष करने वाला रुष्ट, मन से क्रोध करने वाला कुपित, क्रोधाधिक्य के कारण भीषणता को प्राप्त चाण्डिक्यित, और क्रोध ज्वाला से जलता हुआ अर्थात् दान्त पीसता हुआ मिसमिसीमाण कहलाता है। 314 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय .[प्रथम श्रुतस्कंध