________________ समजिणित्ता-उपार्जन करके। 'एक्कवीसं वाससयं-१२१ वर्ष की। परमाउं-परमायु को। पालयित्ताभोग कर। कालमासे-कालमास में। कालं किच्चा-काल कर के। इमीसे-इस। रयणप्पहाए-रत्नप्रभा नामक। पुढवीए-पृथिवी-नरक में। णेरइयत्ताते-नारकी रूप से। उववजिहिति-उत्पन्न होगा। ततो-वहां से निकल कर। सिरीसिवेसु-सरीसृप-पेट के बल पर सर्पट चलने वाले सर्प आदि अथवा भुजा के बल पर चलने वाले नकुल आदि प्राणियों की योनि में जन्म लेगा। संसारो-संसार भ्रमण करेगा। जहा-जिस प्रकार। पढमे-प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। तहेव-उसी प्रकार / जावयावत्। पुढवी-पृथिवीकाया में उत्पन्न होगा। तओ-वहां से। अणंतरं-व्यवधान रहित। से णं-वह। उव्वट्टित्ता-निकल कर। इहेव-इसी। जंबुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत। भारहे वासेभारतवर्ष में। चंपाए-चम्पा नाम की। णयरीए-नगरी में। महिसत्ताए-महिषरूप में अर्थात् भैंसे के भव में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। से णं-वह। तत्थ-वहां-उस भव में। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। गोट्ठिल्लिएहिं-गौष्ठिकों के द्वारा अर्थात् एक मंडली के समवयस्कों द्वारा। जीवियाओ-जीवन से। ववरोविए समाणे-रहित किया हुआ। तत्थेव-उसी। चंपाए-चम्पा नामक। णयरीए-नगरी में। सेट्टिकुलंसि-श्रेष्ठी के कुल में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। तत्थ-वहां पर। से णं-वह। उम्मुक्कबालभावे-बाल्य अवस्था को त्याग कर अर्थात् युवावस्था को प्राप्त हुआ। तहारूवाणंतथारूप-शास्त्रवर्णित गुणों को धारण करने वाले। थेराणं-स्थविरों-वृद्ध जैन साधुओं के। अंतिए-पास। केवलं-केवल-निर्मल अर्थात् शंका, कांक्षा आदि दोषों से रहित / बोहिं०-बोधिलाभ सम्यक्त्वलाभ प्राप्त करेगा, तदनन्तर। अणगारे-अनगार होगा वहां से काल करके। सोहम्मे कप्पे०-सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा शेष / जहा पढमे-जिस प्रकार प्रथम अध्याय में मृगापुत्रविषयक वर्णन किया गया है वैसे ही। जाव-यावत्। अंतं-कर्मों का अर्थात् जन्म-मरण का अन्त। काहिइत्ति-करेगा, इति शब्द समाप्ति का बोधक है। निक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार की कल्पना कर लेनी चाहिए। बिइयं-द्वितीय। अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-समाप्त हुआ। मूलार्थ- भदन्त ! उज्झितक कुमार यहां से कालमास में-मृत्यु का समय आ जाने पर काल करके कहां जाएगा? और कहां उत्पन्न होगा? गौतम ! उज्झितक कुमार 25 वर्ष की पूर्णायु को भोग कर आज ही त्रिभागावशेष दिन में अर्थात् दिन के चौथे प्रहर में शूली द्वारा भेद को प्राप्त होता हुआ काल-मास में काल कर के रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथ्वी-नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा। वहां से निकल कर सीधा इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत के पादमूल-तलहटी (पहाड़ के नीचे की भूमि) में वानर-कुल में वानर के रूप से उत्पन्न होगा।वहां पर बाल्य भाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ वह तिर्यग्भोगोंपशुसम्बन्धी भोगों में मूछित, आसक्त, गृद्ध-आकांक्षा वाला, ग्रथित-भोगों के स्नेहपाश 1. कोई इन पदों का अर्थ 2100 वर्ष भी करते हैं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [319