________________ नारकी रूप से। उववज्जिहिति-उत्पन्न होगा। तते णं-वहां से।अणंतरं-अन्तर रहित।से-वह / उव्वट्टित्तानिकल कर / इहेव-इसी। जम्बुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत। भारहे वासे-भारत वर्ष में। वेयड्ढगिरिपायमूले-वैताढ्य पर्वत की तलहटी-पहाड़ के नीचे की भूमि में। वाणरकुलंसि-वानर (बन्दर) के कुल में। वाणरत्ताए-वानर रूप से। उववजिहिति-उत्पन्न होगा। से णं तत्थ-वह वहां पर। उम्मुक्कबालभावे-बालभाव को त्याग कर। तिरियभोएसु-तिर्यंच-सम्बन्धी भोगों में। मुच्छिते-मूछितआसक्त। गिद्धे-गृद्ध-आकांक्षा वाला / गढिते-ग्रथित-स्नेहजाल में आबद्ध। अज्झोववन्ने-अध्युपपन्न-जो कि अधिक संलग्नता को उपलब्ध कर रहा है, हो। जाते जाते-जातमात्र / वानरपेल्लए-वानरों के बच्चों को।वहेहिति-मार डाला करेगा। तं-इस कारण वह। एयकम्मे ४-इन कर्मों को करने वाला। कालमासेकाल मास में। कालं किच्चा-काल कर। इहेव-इसी। जंबुद्दीवे दीव-जंबूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत / भारहे वासे-भारतवर्ष में। इंदपुरे-इन्द्रपुर नामक। नयरे-नगर में। गणियाकुलंसि-गणिका के कुल में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। ततेणं-तदनन्तर ।अम्मापितरो-माता-पिता।जायमेत्तयंपैदा होने के अनन्तर अर्थात् तत्काल ही। तं-उस। दारयं-बालक को। वद्धेहिंति २-वर्द्धितक-नपुंसककरेंगे। नपुंसगकम्मं-नपुंसक का कर्म। सिक्खावेहिति-सिखाएंगे।तते णं-तदनन्तर / तस्स-उस।दारगस्सबालक के। अम्मापितरो-माता पिता। णिव्वत्तबारसाहस्स-बारहवें दिन के व्यतीत हो जाने पर। इमं एयारूवं-यह इस प्रकार का। णामधेजं-नाम। करेहिति-करेंगे। पियसेणे-प्रियसेन। णाम-नामक। णपुंसए-नपुंसक। होउ णं-हो। तते णं-तदनन्तर। से पियसेणे-वह प्रियसेन। णंपुसए-नपुंसक। उम्मुक्कबालभावे-बाल्य अवस्था को त्याग कर। जोव्वणगमणुप्पत्ते-युवावस्था को प्राप्त हुआ। १विण्णायपरिणयमेत्ते-विज्ञान-विशेष ज्ञान और बुद्धि आदि में परिपक्वता को प्राप्त कर। रूवेण यरूप से। जोव्वणेण य-यौवन से। लावण्णेण य-लावण्य-आकृति की सुन्दरता से। उक्किद्वे-उत्कृष्टप्रधान / उक्किट्ठसरीरे-उत्कृष्टशरीर-सुन्दर शरीर वाला। भविस्सति-होगा।तते णं-तदनन्तर।से पियसेणेवह प्रियसेन। णपुंसए-नपुंसक। इंदपुरे णयरे-इन्द्रपुर नगर में। बहवे-अनेक। राईसर-राजा तथा ईश्वर। जाव-यावत्। पभिइओ-अन्य मनुष्यों को। बहूहि-अनेक। विजापओगेहि य-विद्या के प्रयोगों से। मंतचुण्णेहि य-मंत्र द्वारा मन्त्रित चूर्ण-भस्म आदि के योग से। हियउड्डावणेहि य-हृदय को शून्य कर देने वाले। णिण्हवणेहि य-अदृश्य कर देने वाले। पण्हवणेहि य-प्रसन्न कर देने वाले। वसीकरणेहि य-वशीकरण करने वाले। आभिओगिएहि य-पराधीन करने वाले प्रयोगों से। अभिओगित्ता-वश में करके / उरालाइं-उदार-प्रधान / माणुस्सयाइं-मनुष्य सम्बन्धी। भोगभोगाई-काम-भोगों का। भुंजमाणेउपभोग करता हुआ। विहरिस्सति-विहरण करेगा। तते णं-तदनन्तर! से-वह। पियसेणे-प्रियसेन / णपुंसए-नपुंसक। एयकम्मे ४-इन कर्मों के करने वाला। सुबहुं-अत्यन्त। पावं-पाप। कम्म-कर्म का। 1. यहां-विज्ञक और परिणतमात्र ये दो शब्द हैं। विज्ञक का अर्थ है-विशेष ज्ञान वाला और बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को प्राप्त परिणतमात्र कहलाता है। 2. "-जाव-यावत्-" पद से -तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य श्रेष्ठी और सार्थवाह, इन पदों का ग्रहण समझना। इन पदों की व्याख्या पीछे की जा चुकी है। 318 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध