________________ अथवा स्वेदन, अवदाहन, अवस्नान, अनुवासन, बस्तिकर्म, निरुह, शिरावेध, तक्षण, प्रतक्षण, शिरोबस्ति, तर्पण [इन क्रियाओं से] तथा पुटपाक, त्वचा, मूल, कन्द, पत्र, पुष्प, फल और बीज एवं शिलिका (चिरायता) के उपयोग से तथा गुटिका, औषध, भैषज्य आदि के प्रयोग से प्रयत्न करते हैं अर्थात् इन पूर्वोक्त साधनों का रोगोपशांति के लिए उपयोग करते हैं। परन्तु इन पूर्वोक्त नानाविध उपचारों से वे उन 16 रोगों में से किसी एक रोग को भी उपशान्त करने में समर्थ न हो सके।जब उन वैद्य और वैद्यपुत्रादि से उन 16 रोगातंकों में से एक रोगातंक का भी उपशमन न हो सका तब वे वैद्य और वैद्यपुत्रादि श्रान्त, तान्त और परितान्त होकर जिधर से आए थे उधर को ही चल दिए। टीका-एकादि राष्ट्रकूट ने रोगाक्रान्त होने पर अपने अनुचरों को कहा कि तुम विजयवर्द्धमान खेट के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध स्थलों पर जाकर यह घोषणा कर दो कि एकादि राष्ट्रकूट के शरीर में एक साथ ही श्वास कासादि 16 भीषण रोग उत्पन्न हो गए हैं, उन के उपशमन के लिए वैद्यों, ज्ञायकों, और चिकित्सकों को बुला रहे हैं। यदि कोई वैद्य, ज्ञायक, या चिकित्सक उन के किसी एक रोग को भी उपशान्त कर देगा तो उसको भी वह बहुत सा धन देकर सन्तुष्ट करेगा। अनुचरों ने अपने स्वामी की इच्छानुसार नगर में घोषणा कर दी। इस घोषणा को सुन कर खेट में रहने वाले बहुत से वैद्य, ज्ञायक और चिकित्सक वहां उपस्थित हुए। उन्होंने शास्त्र विधि के अनुसार विविध प्रकार के उपचारों द्वारा एकादि के शरीरगत रोगों को शान्त करने का भरसक प्रयत्न किया, परन्तु उस में वे सफल नहीं हो पाए। समस्त रोगों का शमन तो अलग रहा, किसी एक रोग को भी वे शान्त न कर सके। तब सब के सब म्लान मुख से आत्मग्लानि का अनुभव करते हुए वापिस आ गए। प्रस्तुत सूत्र का यह संक्षिप्त भावार्थ है जो कि उस से फलित होता है। - यहां पर एकादि राष्ट्रकूट का अनुचरों द्वारा घोषणा कराना सूचित करता है कि उस के गृहवैद्यों के घरेलू चिकित्सकों के उपचार से उसे कोई लाभ नहीं हुआ। एकादि राष्ट्रकूट एक विशाल प्रान्त का अधिपति था और धनसम्पन्न होने के अतिरिक्त एक शासक के रूप में वह वहां विद्यमान था। तब उसके वहां निजी वैद्य न हों और उनसे चिकित्सा न कराई हो, यह संभव ही नहीं हो सकता। परन्तु गृहवैद्यों के उपचार से लाभ न होने पर अन्य वैद्यों को बुलाना उस के लिए अनिवार्य हो जाता है। एतदर्थ ही एकादि राष्ट्रकूट को घोषणा करानी पड़ी हो, यह अधिक सम्भव है। तथा "बहुरत्ना वसुन्धरा" इस अभियुक्तोक्त के अनुसार संसार में अनेक ऐसे गुणी पुरुष होते हैं जो कि पर्याप्त गुणसम्पत्ति के स्वामी होते हुए भी अप्रसिद्ध रहते हैं, और बिना बुलाए कहीं जाते नहीं। ऐसे गुणी पुरुषों से लाभ उठाने का भी यही उपाय प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [177