________________ अवसर प्राप्त होता है। स्त्री-जाति उन रत्नों की खान है जिन का मूल्य संसार में आंका ही नहीं जा सकता। जिन महापुरुषों की चरण-रज से हमारी यह भारत-वसुंधरा पुण्य भूमि कहलाने का गौरव प्राप्त करती है उन महापुरुषों को जन्म देने वाली यह स्त्री जाति ही तो है। हमारे विचारानुसार तो संसार के उत्थान और पतन दोनों में ही स्त्री-जाति को प्राधान्य प्राप्त है। अस्तु। अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के नायक का वर्णन करते हैं मूल-तत्थ णं वाणियग्गामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसति अड्ढे / तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नाम भारिया होत्था। अहीण / तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झितए नामंदारए होत्था, अहीण. जाव सुरूवे। छाया-तत्र वाणिजग्रामे विजय-मित्रो नाम सार्थवाहः परिवसति आढ्य / तस्य विजयमित्रस्य सुभद्रा नाम भार्याऽभूत् / अहीन / तस्य विजयमित्रस्य पुत्रः सुभद्रायाः भार्याया आत्मजः उज्झितको नाम दारकोऽभूत्। अहीन यावत् सुरूपः। ___ पदार्थ-तत्थ णं-उस। वाणियग्गामे-वाणिज-ग्राम नामक नगर में। विजयमित्ते-विजयमित्र। णाम-नाम का। सत्थवाहे-सार्थवाह-व्यापारी यात्रियों के समूह का मुखिया। परिवसति-रहता था जो कि। अड्ढे०-धनी-धनवान् था। तस्स णं-उस। विजयमित्तस्स-विजयमित्र की। अहीण-अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर सम्पन्न / सुभद्दा-सुभद्रा। नाम-नाम की। भारिया-भार्या होत्था-थी। तस्स णं-उस। विजयमित्तस्स-विजयमित्र का। पुत्ते-पुत्र।सुभद्दाए भारियाए-सुभद्रा भार्या का।अत्तए-आत्मज / उज्झितएउज्झितक। नाम-नाम का। दारए-बालक। होत्था-था जोकि / अहीण-अन्यून पंचेन्द्रिय शरीर सम्पन्न। जाव-यावत्। सुरूवे-सुन्दर रूप वाला था। मूलार्थ-उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नाम का एक धनी सार्थवाह-व्यापारी वर्ग का मुखिया निवास किया करता था। उस विजय मित्र की सर्वांग-सम्पन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नाम का एक सर्वांग-सम्पन्न और रूपवान् बालक था। ____टीका-कामध्वजा गणिका के वर्णन के अनन्तर सूत्रकार उज्झितक के माता-पिता का वर्णन कर रहे हैं। वाणिज-ग्राम नगर में विजयमित्र नाम का एक सार्थवाह (व्यापारी वर्ग के मुख्य-नायक को अथवा यात्री-समूह के प्रधान को सार्थवाह कहते हैं) निवास किया करता था, जोकि बड़ा धनवान् था, उसकी पत्नी का नाम सुभद्रा था। तथा उनके उज्झितक नाम का एक बालक था जो कि सुन्दर शरीर अथच मनोहर आकृति वाला था। 242 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध