________________ कूटग्राह का।नीहरणं-नीहरण-निकलना।करेति 2 ता-करता है करके। बहूई-अनेक। 'लोइयमयकिच्चाइंलौकिक मृतक क्रियाएं। करेइ-करता है। मूलार्थ-तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नवमास पूरे हो जाने पर बालक को जन्म दिया।जन्मते ही उस बालक ने महान कर्णकटु एवं चीत्कारपूर्ण भयंकर शब्द किया, उस के चीत्कारपूर्ण शब्द को सुन कर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के नागरिक, पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत हुए, उद्वेग को प्राप्त हो कर चारों ओर भागने लगे। तदनन्तर उस बालक के माता-पिता ने इस प्रकार से उस का नामकरण संस्कार किया कि जन्म लेते ही उस बालक ने महान कर्णकटु और चीत्कारपूर्ण भीषण शब्द किया है जिसे सुनकर हस्तिनापुर के गौ आदि नागरिक-पशु भयभीत हुए और उद्विग्न हो कर चारों ओर भागने लगे, इसलिए इस बालक का नाम गोत्रास [ गो आदि पशुओं को त्रास देने वाला ] रखा जाता है। तदनन्तर गोत्रास बालक ने बालभाव को त्याग कर युवावस्था में पदार्पण किया। तदनन्तर अर्थात् गोत्रास के युवक होने पर भीम कूटग्राह किसी समय कालधर्म को प्राप्त हुआ अर्थात् उस की मृत्यु हो गई। तब गोत्रास बालक ने अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से परिवृत हो कर रुदन, आक्रन्दन और विलाप करते हुए कूटग्राह का दाह-संस्कार किया और अनेक . लौकिक मृतक क्रियाएं की, अर्थात् और्द्धदैहिक कर्म किया। टीका-गर्भ की स्थिति पूरी होने पर भीम कूटग्राह की स्त्री उत्पला ने एक बालक को जन्म दिया, परन्तु जन्मते ही उस बालक ने बड़े भारी कर्णकटु शब्द के साथ ऐसा भयंकर चीत्कार किया कि उस को सुनकर हस्तिनापुर नगर के तमाम पशु भयभीत होकर इधर-उधर भागने लग पड़े। प्रकृति का यह नियम है कि पुण्यशाली जीव के जन्मते और उस से पहले गर्भ में आते ही पारिवारिक अशांति दूर हो जाती है तथा आसपास का क्षुब्ध वातावरण भी प्रशान्त हो जाता है एवं माता को जो दोहद उत्पन्न होते हैं वे भी भद्रं तथा पुण्यरूप ही होते हैं। परन्तु पापिष्ट जीव के आगमन में सब कुछ इस से विपरीत होता है। उस के गर्भ में आते ही नानाप्रकार के उपद्रव होने लगते हैं। माता के दोहद भी सर्वथा निकृष्ट एवं अधर्म-पूर्ण होते हैं। प्रशान्त वातावरण में भयानक क्षोभ उत्पन्न हो जाता है और उस का जन्म अनेक जीवों के भय और 1. लौकिकमृतकृत्यानि-अग्निसंस्कारादारभ्य तन्निमित्तिकदानभोजनादिपर्यन्तानि कर्माणीति भावः। अर्थात्-अग्निसंस्कार से लेकर पिता के निमित्त किए गए दान और भोजनादि कर्म लौकिकमृतक कृत्य शब्द से संगृहीत होते हैं। 282 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध