________________ एवं। विस्सरे-कर्णकटु थी। तते णं-तदनन्तर / तस्स-उस / दारगस्स-बालक का। आरसियसद-आरसित शब्द-चिल्लाहट को। सोच्चा-सुन कर तथा। णिसम्म-अवधारण कर। हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर नामक। णगरे-नगर में। बहवे-अनेक। णगरगोरूवा-नागरिक पशु। जाव-यावत्। वसभा य-वृषभ। 'भीया ४-भयभीत हुए। उव्विग्गा-उद्विग्न हुए। सव्वओ समंता-चारों ओर। विप्पलाइत्था-भागने लगे। तते णं-तदनन्तर। तस्स दारगस्स-उस बालक के। अम्मापियरो-माता-पिता, उस का। अयमेयारूवं-इस प्रकार का / नामधेज-नाम। काति-रखने लगे। जम्हा णं-जिस कारण। अम्हं-हमारे। जायमेत्तेणं-जन्म लेते। चेव-ही। इमेणं-इस। दारएणं-बालक ने। महया २-महान। सद्देणं-शब्द से। आरसिते-भयानक आवाज़ की जो कि। विग्घुढे-चीत्कारपूर्ण थी और। विस्सरे-कानों को कटु लगने वाली थी। तते णंतदनन्तर। एयस्स-इस। दारगस्स-बालक के। आरसितसई-चिल्लाहट के शब्द को। सोच्चा-सुनकर तथा। णिसम्म-अवधारण कर। हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर। णगरे-नगर में। बहवे-अनेक। णगरगोरूवा य-नागरिक पशु। जाव-यावत् / भीया ४-भयभीत हुए। सव्वओ समंता-चारों ओर। विप्पलाइत्थाभागने लगे। तम्हा णं-इसलिए। अम्हं-हमारा। दारए-यह बालक। गोत्तासए-गोत्रास, इस / नामेणं-नाम से। होउ-हो। तते णं-तत्पश्चात् / से-वह / गोत्तासे-गोत्रास नामक।दारए-बालक। उम्मुक्कबालभावेबालभाव को त्याग कर। जाव-यावत् / जाते यावि होत्था-युवावस्था को प्राप्त हो गया। तते णंतदनन्तर / से भीमे-वह भीम नामक / कूडग्गाहे-कूटग्राह / अण्णया-अन्यदा। कयाती-कदाचित्-किसी समय। कालधम्मुणा-काल धर्म से। संजुत्ते-संयुक्त हुआ अर्थात् काल कर गया-मर गया। तते णंतदनन्दर / से-वह / गोत्तासे-गोत्रास। दारए-बालक / बहुणं-अनेक। मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं-मित्र-सुहृद्, ज्ञातिजन, निजंक-आत्मीय-पुत्रादि, स्वजन-पितृव्यादि, सम्बन्धी-श्वसुरादि, परिजन-दास-दासी आदि के। सद्धिं-साथ। संपरिवुडे-संपरिवृत-घिरा हुआ। रोअमाणे-रुदन करता हुआ। कंदमाणे-आक्रन्दन करता हुआ। विलवमाणे-विलाप करता हुआ। भीमस्स कूडग्गाहस्स-भीम माता-पितृः पुत्रादिर्निजकः स्वजनः पितृव्यभ्रात्रादिः। सम्बन्धी श्वशुरादिर्दासादिः परिजनो ज्ञेयः // 2 // अर्थात् मित्र सदा एक रूप रहता है, उस के मानस में कभी अन्तर नहीं आने पाता, वह हितकारी उपदेश करता है, प्रीति को बढ़ाता है। समान विचार और आचार वालों को ज्ञाति कहते हैं। माता-पिता और पुत्र आदि निजक कहलाते हैं। पितृव्य-चाचा और भ्राता आदि को स्वजन कहते हैं। श्वशुर आदि को सम्बन्धी कहा जाता है और दास-दासी आदि को परिजन कहा जाता है। 1. ".-भीया-" यहां दिया गया 4 का अंक "-तत्था, उब्विग्गा, संजायभया-" इन तीन पदों का संसूचक है। भीत आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है "-भीता- भययुक्ताः भयजनकशब्दश्रवणाद्, त्रस्ता:-त्रासमुपगताः""-कोप्यस्माकं प्राणापहारको जन्तुः समागतः, इति ज्ञानात्, उद्विग्ना: व्याकुला:-कम्पमानहृदयाः संजातभया:-भयजनितकम्पेन प्रचलितगात्रा:-"अर्थात् हस्तिनापुर नगर के गौ, साण्ड आदि पशु भयोत्पादक शब्द को सुन कर भीत-भयभीत हुए और "-कोई हमारे प्राण लूटने वाला जीव यहाँ आ गया है-" यह सोच कर त्रस्त हुए। उन का हृदय काँपने लग पड़ा। हृदय के साथ-साथ शरीर भी कांपने लग गया। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [281