________________ चन्द्रसूर्य दर्शन सम्बन्धी उत्सवविशेष, छठे दिन कुल मर्यादानुसार जागरिका-जागरण महोत्सव किया।.तथा उसके माता-पिता ने ग्यारहवें दिन के व्यतीत होने पर बारहवें दिन उसका गौण-गुण से सम्बन्धित गुणनिष्पन्न-गुणानुरूप नामकरण इस प्रकार किया चूंकि हमारा यह बालक जन्मते ही एकान्त अशुचि प्रदेश में त्यागा गया था, इसलिए हमारे इस बालक का उज्झितक कुमार यह नाम रखा जाता है। तदनन्तर वह उज्झितक कुमार क्षीरधात्री, मज्जनधात्री, मंडनधात्री, क्रीडापनधात्री और अंकधात्री इन पाँच धायमाताओं से युक्त दृढ़प्रतिज्ञ की तरह यावत् निर्वात एवं निर्व्याघात पर्वतीय कन्दरा में विद्यमान चम्पक-वृक्ष की भांति सुख-पूर्वक वृद्धि को प्राप्त होने लगा। टीका-प्रस्तुत सूत्र में गोत्रास के जीव का नरक से निकल कर मानव भव में उत्पन्न होने का वर्णन किया गया है। वह दूसरी नरक से निकल कर सीधा वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा स्त्री की कुक्षि में गर्भरूप से उत्पन्न हुआ। इस का तात्पर्य यह है कि उस ने मार्ग में और किसी योनि में जन्म धारण नहीं किया। दूसरे शब्दों में उस का मानव भव में अनंतरागमन हुआ, परम्परागमन नहीं। सुभद्रा देवी पहले जातनिंदुका थी, अर्थात् उस के बच्चे जन्मते ही मर जाते थे। "जातनिंदया-जातनिंदुका" की व्याख्या टीकाकार ने इस प्रकार की है "जातान्युत्पन्नान्यपत्यानि निर्द्रतानि निर्यातानि मृतानीत्यर्थो यस्याः सा जातनिर्द्वता", अर्थात् जिस की सन्तान उत्पन्न होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए उसे जातनिंदुआजात-निर्द्वता कहते हैं। कोषकारों के मत में जातनिंदुया पद का जातनिंदुका यह रूप भी उपलब्ध होता है। नवमास व्यतीत होने के अनन्तर सुभद्रा देवी ने बालक को जन्म दिया। उत्पन्न होने के अनन्तर उस ने बालक को कूड़े कचरे में फैंकवा दिया, फिर उसे उठवा लिया गया। ऐसा - - 1. पुत्रजन्म के तीसरे दिन चन्द्र और सूर्य का दर्शन तथा छठे दिन जागरणमहोत्सव ये समस्त बातें उस प्राचीन समय की कुलमर्यादा के रूप में ही समझनी चाहिएं। आध्यात्मिक जीवन से इन बातों का कोई सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता। 2. क्षीरधात्री के सम्बन्ध में दो प्रकार के विचार हैं-प्रथम तो यह कि जिस समय बालक के दुग्धपान का समय होता था, उस समय उसे माता के पास पहुँचा दिया जाता था, समय का ध्यान रखने वाली और बालक को माता के पास पहुँचाने वाली स्त्री को क्षीरधात्री कहते हैं। दूसरा विचार यह है कि-स्तनों में या स्तनगत दूध में किसी प्रकार का विकार होने से जब माता बालक को दूध पिलाने में असमर्थ हो तो बालक को दूध पिलाने के लिए जिस स्त्री का प्रबन्ध किया जाए उसे क्षीरधात्री कहते हैं। दोनों विचारों में से प्रकृत में कौन विचार आदरणीय है, यह विद्वानों द्वारा विचारणीय है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [291