________________ के साथ। करेंति-करते हैं। तते णं-तदनन्तर / तस्स दारगस्स-उस बालक के। अम्मापितरो-माता-पिता। एक्कारसमे ग्यारहवें। दिवसे-दिन के। निव्वत्ते-व्यतीत हो जाने पर / बारसाहे संपत्ते-बारहवें दिन के आने पर अयमेयारूवं-इस प्रकार का / 'गोण्णं-गौण-गुण से सम्बन्धित / गुणनिप्फण्णं-गुणनिष्पन्नगुणानुरूप। नामधेजं-नाम। करेंति-करते हैं। जम्हा णं-जिस कारण। जायमेत्तए चेव-जातमात्र हीजन्मते ही। अम्हं-हमारा। इमे-यह। दारए-बालक। एगंते-एकान्त। उक्कुरुडियाए-कूड़ा फैंकने की जगह पर। उज्झिते-गिरा दिया गया था। तम्हा णं-इसलिए / अम्हं-हमारा यह / दारए-बालक।उज्झियएउज्झितक। नामेणं-नाम से। होउ-ही-प्रसिद्ध हो अर्थात् इस बालक का हम उज्झितक यह नाम रखते हैं। तते णं-तदनन्तर। से उज्झियए-वह उज्झितक। दारए-बालक / पंचधातीपरिग्गहिते-पांच धायमाताओं की देखरेख में रहने लगा। तंजहा-जैसे कि अर्थात् उन धायमाताओं के नाम ये हैं- / खीरधातीएक्षीरधात्री-दूध पिलाने वाली। मज्जण-स्नानधात्री-स्नान कराने वाली। मंडण-मंडनधात्री-वस्त्राभूषण से अलंकृत कराने वाली। कीलावण-क्रीडापनधात्री-क्रीड़ा कराने वाली। अंकधातीए-अंकधात्री-गोद में खिलाने वाली, इन धायमाताओं के द्वारा। जहा-जिस प्रकार। दढपतिण्णे-दृढ़-प्रतिज्ञ का। जाव-यावत्, वर्णन किया है, उसी प्रकार।निव्वाय-निर्वात-वायुरहित। निव्वाघाय-आघात से रहित। गिरिकंदरमल्लीणेपर्वतीय कन्दरा में अवस्थित। चंपयपायवे-चम्पक वृक्ष की तरह। सुहंसुहेणं-सुखपूर्वक। परिवड्ढइवृद्धि को प्राप्त होने लगा। मूलार्थ-तदनन्तर विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या जो कि जातनिंदुका थी अर्थात् जन्म लेते ही मर जाने वाले बच्चों को जन्म देने वाली थी। अतएव उसके बालक उत्पन्न होते ही विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तदनन्तर वह कूटग्राह गोत्रास का जीव दूसरी नरक से निकल कर सीधा इसी वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ-गर्भ में आया। तदनन्तर किसी अन्य समय में नवमास पूरे होने पर सुभद्रा सार्थवाही ने पुत्र को जन्म दिया।जन्म देते ही उस बालक को सुभद्रा सार्थवाही ने एकान्त में कूड़ा गिराने की जगह पर डलवा दिया और फिर उसे उठवा लिया, उठवा कर क्रमपूर्वक संरक्षण एवं संगोपन करती हुई वह उसका परिवर्द्धन करने लगी। तदनन्तर उस बालक के माता-पिता ने महान् ऋद्धिसत्कार के साथ कुल मर्यादा के अनुसार पुत्र जन्मोचित बधाई बांटने आदि की पुत्रजन्म-क्रिया और तीसरे दिन 1. गौण (गुण से सम्बन्ध रखने वाला) और गुण निष्पन्न (गुण का अनुसरण करने वाला) इन दोनों शब्दों में अर्थगत कोई भिन्नता नहीं है। यहाँ प्रश्न होता है कि फिर इन दोनों का एक साथ प्रयोग क्यों किया गया? इस के उत्तर में आचार्य श्री अभयदेव सूरि का कहना है कि गौण शब्द का अर्थ अप्रधान भी होता है, कोई इस का प्रस्तुत में अप्रधान अर्थ ग्रहण न कर ले इस लिए सूत्रकार ने उसे ही स्पष्ट करने के लिए गुणनिष्पन्न इस पृथक् पद का उपयोग किया है। 290 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय - . [प्रथम श्रुतस्कंध