________________ है। इधर तो भीम के मन में पुत्र के भावी उत्कर्ष को देखने की लालसा बढ़ रही है उधर समय उसे और चेतावनी दे रहा है। गोत्रास के युवावस्था में पदार्पण करते ही भीम को काल ने आ ग्रसा और वह अपनी सारी आशाओं को संवरण कर के दूसरे लोक के पथ का पथिक जा बना। ___पिता के परलोकगमन पर गोत्रास को बहुत दुःख हुआ, उसका रुदन और विलाप देखा नहीं जाता। अन्त में स्वजन सम्बन्धी लोगों द्वारा कुछ सान्त्वना प्राप्त कर उसने पिता का दाहकर्म किया और तत्सम्बन्धी और्द्धदैहिक कर्म के आचरण से पुत्रोचित कर्त्तव्य का पालन किया। "-नगरगोरूवा जाव वसभा-" यहां पठित "-जाव-यावत्-" पद से "-णं सणाहा य अणाहा यणगरगाविओ यणगरबलीवद्दा यणगरपड्डियाओ यणगर-" यह पाठ ग्रहण करने की सूचना सूत्रकार ने दी है। इन पदों का अर्थ पीछे दिया जा चुका है। "-णगरगोरूवा जाव भीया-" यहां का "-जाव-यावत्-" पद "-सणाहा य अणाहा य-" से लेकर "-णगरवसभा य-" यहां तक के पाठ का परिचायक है। "-बालभावे जाव जाते-" यहां पठित "-जाव-यावत्-" पद से "विण्णायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते-" इन पदों का ग्रहण होता है। सदा एकान्त हित का उपदेश देने वाले सखा को मित्र कहते हैं। समान आचार-विचार वाले जाति-समूह को ज्ञाति कहते हैं। माता, पिता, पुत्र, कलत्र (स्त्री) प्रभृति को निजक कहते हैं। भाई, चाचा, मामा आदि को स्वजन कहते हैं। श्वसुर, जामाता, साले, बहनोई आदि को सम्बंधी कहते हैं। मन्त्री, नौकर, दास, दासी को परिजन कहते हैं। अब सूत्रकार गोत्रास की अग्रिम जीवनी का वर्णन करते हैं मूल-तते णं सुनंदे राया गोत्तासं दारयं अन्नया कयाती सयमेव कूडग्गाहत्ताए ठवेति। तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहें जाए यावि होत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे।तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे कल्लाकल्लि अड्ढरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सन्नद्ध-बद्ध-कवए जाव गहियाउहपहरणे सयातो गिहातो निज्जाति, जेणेव गोमंडवे तेणेव उवा०, बहूणं णगरगोरूवाणं सणा. जाव वियंगेति 2 जेणेव सए गिहे तेणेव उवा / तते णं से गोत्तासे कूड तेहिं बहूहिं गोमंसेहि सोल्लेहि जाव सुरंच 5 आसा० 4 विहरति। तते णं से गोत्तासे कूङ एयकम्मे प्प वि. स. सुबहुं पावं कम्मं समज्जिणित्ता पंच वाससयाई परमाउं पालयित्ता अट्टदुहट्टोवगते कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुंढवीए 284 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध