________________ जाया यावि होथा। तते णं तीसे उप्पलाए कूडग्गाहिणीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूते। छाया-तत्र हस्तिनापुरे नगरे भीमो नाम कूटग्राहो बभूव, अधार्मिको यावत् दुष्प्रत्यानन्दः। तस्य भीमस्य कूटग्राहस्य, उत्पला नाम भार्याऽभूत्, अहीनः / ततः सा उत्पला कूटग्राहिणी. अन्यदा कदाचित् आपन्नसत्त्वा जाता चाप्यभवत्। ततस्तस्या उत्पलायाः कूटग्राहिण्याः त्रिषु मासेषु बहुपरिपूर्णेषु अयमेतद्पः दोहदः प्रादुर्भूतः। पदार्थ-तत्थ णं- उस। हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर नामक। नगरे-नगर में। भीमे-भीम। नामनामक / कूडग्गाहे-कूटग्राह। धोखे से जीवों को फंसाने वाला। होत्था-रहता था। जो कि। अधम्मिएअधर्मी। जाव-यावत्। दुप्पडियाणंदे-बड़ी कठिनता से प्रसन्न होने वाला था। तस्स णं-उस। भीमस्सभीम नामक। कूडग्गाहस्स-कूटग्राह की। उप्पला-उत्पला। नाम-नाम की। भारिया-भार्या / होत्था-थी जो कि / अहीण-अन्यून पंचेन्द्रिय शरीर वाली थी। तते णं-तदनन्तर / सा-वह। उप्पला-उत्पला नामक। कूडग्गाहिणी-कूटग्राह की स्त्री। अण्णया-अन्यदा। कयाती-किसी समय। आवण्णसत्ता-गर्भवती। जाया यावि होत्था-हो गई थी। तते णं-तदनन्तर / तीसे-उस। उप्पलाए-उत्पला नामक / कूडग्गाहिणीएकूटग्राह की स्त्री को। बहुपडिपुण्णाणं-परिपूर्ण पूरे। तिण्हं मासाणं-तीन मास के पश्चात् अर्थात् तीन मास पूरे होने पर। अयमेयारूवे-यह इस प्रकार का। दोहले-दोहद-मनोरथ जो कि गर्भिणी स्त्रियों को गर्भ के अनुरूप उत्पन्न होता है। पाउब्भूते-उत्पन्न हुआ। . मूलार्थ-उस हस्तिनापुर नगर में महान् अधर्मी यावत् कठिनाई से प्रसन्न होने वाला भीम नाम का एक कूटग्राह [ धोखे से जीवों को फंसाने वाला ] रहता था। उस की उत्पला नाम की स्त्री थी जो कि अन्यून पंचेन्द्रिय शरीर वाला थी। किसी समय वह उत्पला गर्भवती हुई, लगभग तीन मास के पश्चात् उसे इस प्रकार का दोहद-गर्भिणी स्त्री का मनोरथ, उत्पन्न हुआ। टीका-उस हस्तिनापुर नगर में भीम नाम का एक कूटग्राह रहता था जो कि बड़ा अधर्मी था। धोखे से जीवों को फंसाने वाले व्यक्ति को कूटग्राह कहते हैं [कूटेन (कपटेन) जीवान् गृण्हातीति कूटग्राहः] तथा धर्म का आचरण करने वाला धार्मिक और धर्मविरुद्ध आचरण करने वाला व्यक्ति अधार्मिक कहलाता है। "अधम्मिए, जाव दुप्पडियाणंदे" यहां पठित "जाव" पद से निम्नलिखित पदों का भी ग्रहण समझ लेना अधम्माणुए, अधम्मिट्टे, अधम्मक्खाई, अधम्मपलोई, अधम्मपलजणे, 1. "-अहम्माणुए-" अधर्मान्-पापलोकान् अनुगच्छतीत्यधर्मानुगः"-अधम्मिटे-"अतिशयेनाधर्मो 268 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध